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________________ इस ग्रंथको प्रशस्तिसे तथा श्रवणबेलगोलाके ५०वें अभिलेखसे यह भी मात होता है कि आचार्य दोरनन्दि सिमान्तचक्रवर्तीका मेघचन्द्रके साथ गुरु-शिष्यके साथ पिता-पुत्रका भी सम्बन्ध था वैदग्ध्यश्रावधूटोपतिरतुलगुणालंकृतिर्मेघचन्द्रविद्यस्यात्मजातो मदनमहिभृतो भेदने वज्रपातः । सैद्धान्तव्यूहचूडामणिरनुपचिन्तामणिभूजनानां योऽभूत्सौजन्यरून्द्रश्रियमवति महो वीरनन्दी मुनोन्द्रः ॥ यही पछ अभिलेखसंख्या ५० का ५० वा पद्य भी है। इससे स्पष्ट है कि मेधचन्द्रके पुत्र वीरनन्दी थे। स्थिति काल श्रवणबेलगोलके अभिलेखसंख्या ४७,५० और ५२ से ज्ञात होता है कि आचार्य मेषचन्द्रका स्वर्गवास शक संवत् १०३७ (वि० सं० १९७२) में और उनके शुभचन्द्रदेवनामक शिष्यका स्वर्गवास शक संवत् १०६२ (वि० सं०१२०३) में हुआ था तथा उनके द्वितीय शिष्य प्रभाचन्द्रदेवने शक संवत् १०४१ (वि० सं० ११७६) में एक महापूजा प्रतिष्ठा करायी थी। इससे प्रतीत होता है कि आचारसारके कर्ता पौरनन्दि सिद्धान्तचक्रवर्ती इसी समयके लगभग अर्थात् ई० सन्की १२वीं शताब्दीके पूर्वाधमें हुए होंगे। 'कर्णाटकविचरिते' के अनुसार नागचन्द्रका समय वि० सं० ११६२ के लगभग निश्चित किया गया है और इनके गुरु बालचन्द्रको मेघचन्द्रका सहा. ध्यायी बताया है। अतएव स्पष्ट है कि मेधचन्द्रके शिष्य वीरनन्दीका समय ई० सन्की १२वीं शताब्दीका मध्य भाग है। प्रस्तुत वीरनन्दि 'चन्द्रप्रभचरित' के कर्ता आचार्य वीरनन्दिसे भिन्न हैं। अभयनन्दिके शिष्य और गुणनन्दिके प्रशिष्य थे। रचना-परिचय वीरनन्दि सिद्धान्तचक्रवर्तीको एक हो कृति प्राप्त है-'आचारसार' । इसमें मुनियोंके आचारका विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। ग्रन्थ १२ परिच्छेदोंमें विभक्त है। ग्रन्थका प्रमाण स्वयं ही ग्रन्थकाने बताया है अन्थप्रमाणमाचारसारस्य श्लोकसम्मितम् । भवेत्सहनं द्विशतं पंचाशचनांकतस्तथा ॥ १. बापारसार, १२।३२ । २. वही, अन्तिम पर। प्राचार्य एवं परम्परापोवफाचार्य : २७१
SR No.090509
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages466
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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