SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 237
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आचार्य हुए। उनके शिष्य नयनन्दि और नयनन्दिके शिष्य नेमिचन्द्र हुए । नेमिचन्द्रके प्रसादसे वसुनन्दिने यह उपासकाध्ययन लिखा है । __ आचार्य वसुनन्दिने आचार्य नयनन्दिको अपने दादागुरुके रूपमें स्मरण किया है । 'सुदंसगरि 3' की प्रसरितमें बताया है कि पानवेश महाराज भोज अनेक विद्वान और आचार्योंके आश्रयदाता थे । लिखा है आराम-गाम-पुरवरणिवेस, सुपसिद्ध अवंती णाम देस | सुरवइपुरिव विवहयणइट्ट, तहि अस्थि धारणयरो गरिट्ट ।। रणिदुद्धर अरिवर-सेल-वज्ज, रिद्धिय देवासुर जणिय चोज्जु । तियणु णारायण सिरिणिकेज, तहिं परवइपुंगमु भोयदेव ॥ मणिगणपहसियरविगभस्थि, तहि जिणवर यद्धविहार अस्थि । णिव विक्कम्मकालही बवगएस, एयारह संवच्छर स एसु । तहिं केवलि चरिउ अमरच्छरेण, णयणंदी विरयउ वित्थरेण ॥' इस प्रशस्तिसे यह स्पष्ट है कि नयनन्दि धारानरेश महाराज भोजके समयविद्यमान थे और उन्होंने वि० सं० ११०० में 'सुदंसणचरिउकी रचना की । नयनन्दि सुप्रसिद्ध ताकिक परीक्षामखसूत्रकार आचार्य माणिकनन्दिके शिष्य थे। बसुनन्दिने अपनी प्रशस्तिमें नयनन्दिको श्रीनन्दिका शिष्य लिखा है। नयनन्दिने अपनी गरुपरम्पसमें श्रीनन्दिके नामका उल्लेख नहीं किया । वसु. नंदिका श्रीनन्दिसे क्या अभिप्राय है—यह स्पष्ट नहीं होता। श्री पं० हीरालालजो सिद्धान्तशास्त्रीका अनुमान है कि रामनन्दिके लिए ही वसुनन्दिने श्रीनन्दिका प्रयोग किया। क्योंकि जिन विशेषणोंसे नयनन्दिने रामनन्दिका स्मरण किया है, उन्हीं विशेषणोंका प्रयोग वसुनन्दिने श्रीनन्दिके लिए किया है । नयनन्दिके शिष्य नेमिचन्द्र हुए और उनके शिष्य वसुनन्दि ।। स्थिति-काल प्रत्थरचनाकार वसनन्दिने इस ग्रन्थके निर्माणका समय नहीं दिया है। परन्तु उनकी इस कृतिका उल्लेख १३ वीं शताब्दीके विद्वान पंडित आशाधरने अपने 'सागारधर्मामृत'को टोकामें किया है । इससे स्पष्ट है कि इनका समय १३ दी शताब्दीके पूर्व निश्चित है । मूलाचारको आचारवृत्तिमें ११ वीं शताब्दीके विद्वान् आचार्य अमितगतिके उपासकाचारसे पांच श्लोक उद्धृत किये हैं। इससे स्पष्ट है कि वे अमितगतिके बाद हुए हैं। अतएव वसुनन्दि श्रावकाचारको रचना विक्रमकी १२ वीं शताब्दीके पूर्वार्धमें हुई है ।श्री स्व० पण्डित नाथूराम१. सुदंसणबरिउ, प्रशस्तिभाग | प्राचार्य एवं परम्परापोषकाचार्य : २२५
SR No.090509
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages466
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy