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रहा । जब विद्वान् तथा उत्तम पुरुष भी अपना कार्य भूल जाते हैं, तब फिर अन्य लोगोंकी क्या बात ?
इस प्रकार आचार्य पक्षीतिने धर्म, दर्शन और कान्यकी त्रिवेणो इस ग्रन्थमें एक साथ प्रवाहित को है।
आचार्य इन्द्रनन्दि द्वितीय इन्द्रनन्दि नामके कई आचार्योंके उल्लेख मिलते हैं। श्रुतावतारके कर्ता और ज्यालिनीकल्पके कर्ता इन्द्रनन्दिसे भिन्न कई इन्द्रनन्दियोंके निर्देश प्राप्त हैं। श्रुतावतारके कर्ताको स्व. श्री पं० नाथूरामजी प्रेमीने गोम्मटसार और मल्लिषेणप्रशस्तिके इन्द्रनन्दिसे अभिन्न स्वीकार किया है। श्रतावतारमें वीरसेन और जिनसेन आचार्य तकको ही सिद्धान्तरचनाका उल्लेख है। अतः यदि
नामचन्द्रींचायक पीछे हुए हात सो बहुत सम्भव है कि गोम्मटसारका भी उल्लेख करते | चतुर्थ इन्द्रनन्दि नीतिसार अथवा समयभूषणके कर्ता हैं जो नेमिचन्द्र आचार्यके पश्चात् हुए हैं। उन्होंने नीतिसारके एक पद्यमें सोमदेवादिकके साथ नेमिचन्द्रका भी नामोल्लेख किया है । पञ्चम इन्द्रनन्दि इन्द्रनन्दि-संहिताके रचयिता है । बहुत सम्भव है कि ये ही इन्द्रनन्दि पूजा-विधिक भी कर्ता हो । दायभागप्रकरणके अन्तमें पायी जानेवाली गाथाओंसे बहुत कुछ स्पष्टता प्राप्त होती है
पुज्ज पुज्जविहाणे जिणसेणाइवीरसेणगुरुजुत्तइ । पुज्जस्स या य गुणभसूरीहि जह तहुद्दिट्टा ॥ ६३ ।। वसुणंदि-इंदणंदि य तह य मुणिएमसंधिगणिनाहं (हिं) । रचिया पुरजविही या पुव्वक्कमदो विणिहिट्ठा ॥ ६४ ।। गोयम-समंतभद्द य अचलं कसुमागदिमुणिणाहिं ।।
वसुणंदि-इंदणंदिहिं रचिया सा संहिता पमाणा हु ।। ६५ ।। दूसरी गाषामें वसुनन्दिके साथ एकसंषिमुनिका भी उल्लेख है, जो एक संधि-संहिताके कर्ता हैं, जिनका समय विक्रमको १३वीं शताब्दी है। अतएव इन इन्द्रनन्दिको एकसंधिभट्टारकके बादका विद्वान् मानना होगा। प्रेमीजीने छेद-पिण्डको इन्द्रनन्दिसंहिताके कर्ताकी कृति माना है और इसका प्रधान कारण यह है कि यह ग्रन्थ उक्त संहितामें उसके चतुर्थ अध्यायके रूपमें समाविष्ट पाया जरता है। अतएव प्रेमीजीने छेद-पिण्डके कर्ताको १३वीं शताब्दीके बादका विद्वान् माना है। श्री आचार्य जुगलकिशोर मुख्तारने छेद-पिण्डको स्वतन्त्र कृति माना है
प्रबुद्धाचार्य एवं परम्भरापोषकाचार्य : २१९