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________________ क्रमशः तीन, चार, पाँच और छह दिन जीवित रहता है। इस प्रकार अपनी छायाके रंग, आकार, लम्बाई, छंदन- मंदन आदि विभिन्न तरीकोंसे आधुका निश्चय किया गया है। परछाया दर्शनी विविका निरूपण करते हुए बताया है कि एक अत्यन्त सुन्दर युवकको जो न लम्बा हो, न नाटा हो, स्नान कराकर सुन्दर वस्त्रों से युक्त कर'ओं ह्रीं क्ते रखते रक्तप्रिये सिंहस्तकसमारूढे कूष्माण्डी देवि मम शरीरे अवतर अवतर छायां सत्यां कुरु कुरु ह्रीं स्वाहा मन्त्रका १०८ बार जाप करना चाहिये, पश्चात् उत्तर दिशाकी ओर मुँह कर उस व्यक्तिको बैठा देना चाहिये, अनन्तर रोगी व्यक्तिको उस युवककी छायाका दर्शन करना चाहिये । यदि रोगी व्यक्ति किसी व्यक्तिको छायाको टेढ़ी, अधोमुखी, पराङ्मुखी और और नीलवणंका देखता है, तो दो दिन जीवित रहता है । यदि छायाको हँसते, रोते, दौड़ते, बिना कान, बाल, नाक, भुजा, जंघा, कमर, सिर और हाथ-पैरके देखता है, तो छह महीने के भीतर मृत्यु होती है। रक्त चर्बी, तेल, पीव और अग्नि आदि पदार्थो को छाया द्वारा उगलते हुए देखता है, तो एक सप्ताह के भीतर मृत्यु होती है । इस प्रकार ९५ वीं गाथा तक परछाया द्वारा मरण समयका निर्धारण किया गया है। छायापुरुषका कथन करते हुए बतलाया गया है कि मन्त्र मन्त्रित व्यक्ति समतल भूमिपर खड़ा होकर गैरोंको समानान्तर कर हाथोंको नीचे लटका कर अभिमान, छल-कपट और विषय-वासना से रहित जो अपनी छायाका दर्शन करता है, वह छायापुरुष कहलाता है । इसका सम्बन्ध नाकके अग्रभागसे, दोनों स्तनों के मध्यभागसे, गुप्तांगोंसे, पैरके कोनोंसे, ललाटसे और आकाशसे होता है । जो व्यक्ति उस छायापुरुषको बिना सिर पैरके देखता है, तो जिस रोगीके लिए छायापुरुषका दर्शन किया जा रहा है, वह छह मास जीवित रहता है । यदि कोई छायापुरुष घुटनोंके बिना दिखलायी पड़े, तो २८ महीने और कमर बिना दिखलायी पड़े तो १५ महीने शेष जीवन समझना चाहिये । यदि छायापुरुष बिना हृदयके दिखलाई पड़े तो ८ महीने, बिना गुप्तांगों के दिखलाई पड़े, तो दो दिन और बिना कन्धोके दिखलाई पड़े तो जीवन एक दिन शेष समझना चाहिये । इस प्रकार छायापुरुषके दर्शन द्वारा मरणसमयका निर्धारण १०७वीं गाथा तक किया गया है । मृत्युके लक्षणोंका कथन रातको स्वप्न देखना हो, इसके पश्चात् १३०दीं गाथा तक स्वप्नदर्शन द्वारा किया है । इस प्रकरणके प्रारम्भमें बताया है कि जिस उसके पूर्व के दिन उपवाससहित मौनव्रत धारण करे और उस दिन समस्त प्रबुद्धाचार्य एवं परम्परापोषकाचार्य : २०१
SR No.090509
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages466
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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