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सर्ग में भरतका जीवनवृत्त और बाहुबली-दीक्षा, द्वादश सर्गमें जयकुमार और सुलोचनाको कथा, त्रयोदश सर्गमें अजितनाथ तीर्थकरसे लेकर शीतलनाथ तीर्थंकर सक पौराणिक इतिवृत्त, चतुर्दश मर्गमें सुमुख और वनमालाको कथा एवं पञ्चदश सर्गमें हरिवंशका आदि इतिवृत्त अंकित है । षोडश सर्गमें मुनिसुव्रतनाथ तीर्थंकरका जीवनवृत्त, सप्तदश सर्गमें मुनिसुव्रतनाथके पुत्र सुग्रतका जीवनवृत्त, अष्टादश सर्गमें अन्धकवृष्णिका जीवनवृत्त, एकोन्नविश सर्गमें वसुदेवका भ्रमणवृत्तान्त, विशति सर्गमें विष्णुकुमारकी कथा, एकविशति सर्गमें चारुदत्तका आख्यान, द्वाविंशति सर्गमें वसुदेवको कथा, त्रयोविंशतिसर्गमें वसुदेव और सोमश्रीके विवाहका वर्णन एवं चतुर्विशति सर्गमें वसुदेव और वनमालाके विवाहको कथा अंकित है। पच्चोसमें और छब्बीसवें मार्गमें विभिन्न कन्याओंके साथ वसुदेवके निवाहका चित्रण आया है | ससाईसवें सर्गमें श्रीभूति पुरोहितकी कथा, अट्ठाईसवें सर्गमें मृगध्वज केवली और महिषका वृत्तान्त, उनतीसवें सर्गमें बमुदेव और बन्धुमती तथा प्रियंगु सुन्दरीको प्राप्तिका चित्रण है । तीसवें सर्गमें वसुदेवका वेगवती और प्रभावतीकी प्राप्तिका वर्णन आया है। इकतीसवें में सुदेवका अप गड़े गाई मविपर मिलना वणित हैं। बत्तीसवें सर्गमें बसुदेवकी रोहिणी नामक स्त्रोसे बलराम नामक पुत्रकी उत्पत्तिका वर्णन है। तेतीसवें सर्गमें जरासंध और कंसकी कथा आयी है । चौंतीसवै सगंमें नेमिनाथके पूर्वभवोंका वर्णन, पैतीसवेंमें कृष्ण-जन्म, छत्तीसवें में बलभद्र और कृष्णका कंसके साथ युद्ध, सैंतीसवें सर्गमें नेमिनाथके गर्भकल्याणक और अड़तीसवें सर्गमें नेमिनाथके जन्मका वर्णन आया है । उनतालीसवें सर्गमें तीर्थंकर नेमिनाथको परिचर्या और चालीसवें सर्गमें जरागंध द्वारा शौरीपुर पर आक्रमण करना वर्णित है। इकतालीसवें सर्गम कृष्ण द्वारा परमेष्ठीका ध्यान; बयालीसवें सर्गमें नारदका द्वारिकामें आगमन
और तैतालीसवें सर्गमें प्रद्युम्न के पूर्वभवोंका वर्णन आया है। चवालीसवें सर्गमें श्रीकृष्णका जाम्बवती, लक्ष्मणा, सुधीमा, गौरी, पद्मावती और गान्धारीके साथ विवाहित होना वर्णित है। पैंतालीसवें सर्गमें पाण्डवोंका यादवोंके यहाँ द्वारिकामें जाना और लाक्षागहमें आग लगनेपर अज्ञातरूपसे पाण्डत्रोंका निकल जाना वणित है। छयालीसवें और संतालीसव सर्गम भीमका कीचकके साथ युद्ध वर्णित है | अड़तालीसवें सर्गमें यदुवंश कुमाराका वर्णन तथा उनचासवें सर्गमें कृष्णको छोटी बहनको सुन्दरता और तपस्याका वर्णन आया है। पचासवें, इक्यावनवें और बावनवे सर्गमें जरासंध और कृष्णके युद्धका वर्णन है। तिरेपनवें सर्गमें कृष्णकी विजय, चौवन- सर्गमें नारदका द्रौपदीसे रुष्ट होकर प्रतिशोध लेना वर्णित है । पचवनवें सर्गमें नेमिनाथके विवाहकी तैयारियाँ
प्रबुद्धाचार्य एवं परम्परापोषकाचार्य : ५