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________________ को प्राप्त हुई। वह विजयपताका फहराता हुआ अपने नगरमें लौट आया। प्रथमसर्ग। मन्त्रिपद प्राप्त करनेके उपरान्त कमठने अपने छोटे भाई मरुभूतिकी पत्नी यसुन्धराको देखा । वह उसके रूप-सौन्दर्यसे अत्यधिक आकृष्ट हुआ, असः उसके अभावमें उसके प्राण जलने लगे । मदनज्वरने उसे धर दबाया। कमठके मित्रोंको चिन्ता हुई और एक मित्रने वास्तविक तथ्य जानकर वसुन्धराको कमठकी बीमारीका समाचार देकर बुलाया 1 वसुन्धरा कमठको देखते ही उसके विकारोंको जान गयी, उसने कमठके अनाचारसे बचनेका पूरा प्रयास किया। पर अन्तमें बाध्य होकर उसे कमठकी बातें स्वीप करनी पड़ी। ___ राजा अरविन्दको वापस लौटने पर कमठके दुराचारका पता चला, तो उसने उसे नगरसे निर्वासित कर दिया। कमठ तापसियोंके आश्रममें गया और वहाँ उसने तपस्वियोंके अस्त ग्रहण कर लिये । मरुभूति भाईको बहुत प्यार करता था, अत: वह उसको खोजने लगा । राजा अरविन्दने मरुभूतिको कमठके पास जानेसे बहुत रोका, पर भ्रात-बात्सल्यके कारण वह रुक न सका । कमठ भूताचल पर्वत पर सपस्या कर रहा था। मरुभूतिको आया हुआ जानकर उसने पहाड़को एक चट्टान उसके ऊपर गिरा दो, जिससे मरुभूतिका प्राणान्त हो गया। इधर पोदनपुरमें स्वयंप्रभ नामके मुनिराज पधारे । राजा उनकी वन्दनाके लिए गया । -द्वितीय सर्ग । वन्दना करनेके उपरान्त अरविन्दने मुनिराजसे मरुभूतिके सम्बन्धमें पूछा । मुनिराजने कमठ द्वारा प्राणान्त किये जानेको घटनाका निरूपण करते हुए कहा कि मरुभूतिका जीव सल्लकीवनमें वचधोष नामका हाथी हुआ है । जब आश्रमवासियोंको कमठकी उद्दण्डता बोर नृशंसताका पता चला तो उन्होंने उसे आश्रमसे निकाल दिया । अतएव वह दुःखी होकर किरातोंके साथ जीवन व्यतीत करने लगा । जीवनहंसा करनेके कारण उसने भी सल्लकीवनमें कृकवाकु नामक सर्पपर्याय प्राप्त की। मरुभूतिकी माता पुत्रवियोगके दुःखसे मरण कर उसी बनमें बानरी हुई। ___ अरविन्दनृपति मनिराबसे मत वृत्तान्त सुनकर विरक्त हो गया और उसने मुनिव्रत धारण किये । मुमिराज अरविन्द अपनी बारह वर्ष बायु अवशिष्ट जानकर तीर्थवन्दनाके लिए ससंघ चल दिये । मार्ग में उन्हें सालकीवन मिला । मनुष्यों के आवागमन एवं कोलाहलको देखकर वज्रघोष बिगड़ गया और लोगोंको कुचलता हुआ आगे आया। जब उसने अरविन्द मुनिराजको देखा तो उसे पूर्वजन्मका स्मरण हो आया और उनके चरणोंमें स्थिर हो गया । अवधिज्ञानके बलसे मुनि प्रमुवाचार्य एवं परम्परापोषकाचार्य : ९३
SR No.090509
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages466
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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