________________
|
|
३. प्रबुद्धाचार्य और परम्परा पोषकाचार्य
इस खण्ड में भी दो परिच्छेद हैं। इनका वर्ण्य विषय निम्न प्रकार है । प्रथम परिच्छेद : प्रबुद्धाचार्य
इस परिच्छेद में डॉक्टर शास्त्रीने प्रबुद्धाचार्यों और उनकी कृतियोंको संकलित किया तथा उनका विस्तृत परिचय दिया है । प्रबुद्धाचार्य से अभिप्राय उन आचार्यों से लिया है, जिन्होंने अपनी प्रतिभा द्वारा ग्रन्थप्रणयनके साथ विवृतियां और भाष्य भी रचे हैं। इस श्रेणी में जिनसेन प्रथम, गुणभद्र, पाल्यकीर्ति, वादी मसिंह, महावीराचार्य, बृहत् अनन्तवीर्य, माणिक्यनन्दि, प्रभाचन्द्र, लघुअनन्तवीर्य, वीरनन्दि महासेन, हरिषेण, सोमदेव, बादिराज, पद्मनन्दि प्रथम, पद्मनन्दि द्वितीय, जयसेन, पद्मप्रभमलधारिदेव, शुभचन्द्र, अनन्तकोति, मल्लिषेण, इन्द्रनन्दि प्रथम, इन्द्रनन्दि द्वितीय आदि पचास आचार्य परिगणित हैं । इन सबका परिचय इस परिच्छेद में निबद्ध है। इनकी कृतियोंका भी विस्तारसे वर्ण्यविषय प्रतिपादित है ।
द्वितीय परिच्छेद: परस्परापोषकाचार्य
लेखकने परम्परापाषकाचार्य उन्हें बताया है, जिन्होंने दिगम्बर परम्पराकी रक्षा के लिए प्राचीन आचार्यो द्वारा निर्मित ग्रन्थोंके आधारपर अपने नये ग्रन्थ लिसे और परम्पराको गतिशील बनाये रखा है। इस श्रेणी में भट्टारक परिगणित हैं। पार्श्वदेव, भास्करनन्दि, ब्रह्मदेव, रविचन्द्र, पद्मनन्दि, सकलकीति, भुवनकीर्ति, ब्रह्मजिनदास, सोमकीर्ति, ज्ञानभूषण, अभिनव धर्मभूषण, विजयकीर्ति, शुभचन्द्र, विद्यानन्दि, मल्लिभूषण, वीरचन्द्र सुमति कीर्ति, यशः कीर्ति, धर्मकीर्ति आदि पचास परम्परापीषकाचार्यों का परिचय, समय-निर्णय और उनकी रचनाओं का इस परिच्छेदम विरतृत निरूपण है ।
आभार
इस विशाल ग्रन्थ के सृजन और प्रकाशनका विद्वत्परिषद्ने जो निश्चय एवं संकल्प किया था, उसकी पूर्णता पर आज हमें प्रसन्नता है । इस संकल्प में विद्वत्परिषद प्रत्येक सदस्यका मानसिक या वाचिक या कायिक सहभाग है । कार्यकारिणी के सदस्योंने अनेक बैठकों में सम्मिलित होकर मूल्यवान् विचार दान किया है । ग्रन्थ वाचन में श्रद्धेय पण्डित कैलाशचन्द्रजी शास्त्री और डॉ० ज्योतिप्रसादजीका तथा ग्रन्थको उत्तम बनाने में स्थानीय विद्वान् प्रो० मशालचन्द्रजी
आमुख १५