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विषयनिरूपण ओघ और आदेश क्रमसे किया गया है । ओधमें मिथ्यात्व सासादन आदि १४ गुणस्थानोंका और आदेशमें गति, इन्द्रिय, काय आदि १४ मार्गणाओंका विवेचन उपलब्ध होता है । सत्प्ररूपणा में १३७ सूत्र हैं । इनमे४०वें सूत्रसे ४५ सूत्र तक छह कायके जीवोंका विस्तारपूर्वक वर्णन आया है। जीवों के बादर और सूक्ष्म मेदों के पर्याप्त एवं अपर्याप्त भेद किये गये हैं । वनस्पति कायके साधारण और प्रत्येक ये दो भेद बतलाये हैं और इन्हीं भेदोंके बादर और सूक्ष्म तथा इन दोनों भेदोंके पर्याप्त और अपर्याप्त उपभेद कर विषयका निरूपण किया है । स्थावर और त्रसकायसे रहित जीवोंको अकायिक कहा है।
जीवठ्ठाण खण्डकी दूसरी प्ररूपणा द्रव्यप्रमाणानुगम है। इसमें १९२ सूत्रों द्वारा गुणस्थान और मार्गणाक्रमसे जीवोंकी संख्याका निर्देश किया है । इस प्ररूपणा के संख्या निर्देशको प्रस्तुत करनेवाले सूत्रों में शतसहस्रकोटि, कोड़ाकोड़ी, संख्यात, असंख्यास, अनन्त और अनन्तानन्त संख्याओं का कथन उपलब्ध है। इसके अतिरिक्त सातिरेक, होन, गुण, अवहारभाग, वर्ग, वर्गमूल, घन, अन्योन्याभ्यस्त राशि, आदि गणितको मौलिक प्रक्रियाओंके निर्देश मिलते हैं । कालगणना के प्रसंग में आवलो, अन्तर्मुहूर्त, अवसर्पिणी, उत्सर्पिणी, पल्योपम आदि एवं क्षेत्रकी अपेक्षा अंगुल, योजन, श्रेणी, जगत्प्रतर एवं लोकका उल्लेख आया है ।
क्षेत्र प्ररूपणा ९२ सूत्रों द्वारा गुणस्थान और मागंणाक्रमसे जीवोंक क्षेत्रका कथन किया गया है। उदाहरणार्थं कुछ सूत्र उद्धृत कर यह बतलाया जायगा कि सूत्रकर्त्ता की शैली प्रश्नोत्तर के रूपमें कितनी स्वच्छ है और विषयको प्रस्तुत करनेका क्रम कितना मनोहर है । यथा-
" सासण सम्माइट्टिप्पहूडि जाव अजोगिकेवलि त्ति केवट खेत्ते ? लोगस्स असंखेज्जदिभाए ।"
सजोगिकेवली केवड खेत्ते ? लोगस्स असंखेज्जदिभागे असंखेज्जेसु वा भागेसु सव्वलोगे वा । "
आदेसेण गदियाणुवादेण गिरयगदीए रइएसु मिच्छाइट्टिप्पहूडि जान असंजदसम्माइट्ठित्ति केवड खेत्तं ? लोगस्स असंखेज्जदिभागे ।
एवं सत्तसु पुढवीस रइया ।
तिरिक्खगदीए तिरिक्खेसु मिच्छाइट्टी केवट खेते ? सव्बलाए । '
१. षट्खण्डागम, जीवस्थान, क्षेत्रप्रमाणानुगम, सूत्र ३-४ ।
२. षट्खण्डागम, जीवस्थान, क्षेत्रप्रमाणानुगम, सूत्र ५, ६, ७,
६०: तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा