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सर्वार्थसिद्धि देव भी उसका दर्शन कर सकते थे। इस चैत्यालयके उन्नत स्तम्भ, स्वर्णमयी कलश एवं उसके अन्य आकार-प्रकारका निर्देश भी गोम्मटसारमें प्राप्त होता है । लिखा है
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वज्जयां जिणभवणं ईसिकभारं सुवण्णकलसं तु । तिहुवणपाणि जेण कथं जग सो रागों ॥। जेभियथं भुवरिमजखतिरीटग्गकिरणजलधोया । सिद्धाण सुद्धपाया सो राओ गोम्मटो जय ॥'
विन्ध्यगिरि के सामने स्थित दूसरे चन्द्रगिरिपर चामुण्डरायबसति के नामसे एक सुन्दर जिनालय स्थित है। इस जिनालय में चामुण्डरायने इन्द्रनीलमणिकी एक हाथ ऊंची तीर्थंकर नेमिनाथको प्रतिमा स्थापित की थी, जो अब अनुपलब्ध है ।
चामुण्डरायका घरू नाम गोम्मट था । यह तथ्य डॉ० ए० एन० उपाध्येने अपने एक लेख में लिखा है । उनके इस नामके कारण ही उनके द्वारा स्थापित बाहुबलिकी मूर्ति गोमटेश्वर के नामसे प्रसिद्ध हुई। डॉ० उपाध्येके अनुसार गोम्मटेश्वरका अर्थ है, चामुण्डरायका देवता । इसी कारण विन्ध्यगिरि, जिसपर गोम्मटेश्वर की मूर्ति स्थित है, गोम्मट कहा गया। इसी गोम्मट उपनामधारी चामुण्डराय के लिए नेमिचन्द्राचार्यने अपने गोम्मटसार नामक ग्रन्थको रचनाकी हैं । इसीसे इस ग्रन्थको गोम्मटसारको संज्ञा दी गयी है। अतएव यह स्पष्ट है कि गंगनरेश राचमल्लदेवके प्रधान सचिव और सेनापति चामुण्डरायका आचार्य नेमिचन्द्र के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध रहा है ।
समय- विचार
चामुण्डरायने अपना चामुण्डपुराण शक सं० २०० ( वि० सं० १०३५) में बनाकर समाप्त किया । अतः उनके लिए निर्मित गोम्मटसारका सुनिश्चित समय विक्रम की ११ वीं शताब्दी है । श्री मुख्तार साहब और प्रेमोजी भी इसी समयको स्वीकार करते हैं ।
गोम्मटसार कर्मकाण्डमें चामुण्डरायके द्वारा निर्मित गोम्मटजिनकी मूर्तिका निर्देश है | अतः यह निश्चित है कि गोम्मटसारको समाप्ति गोम्मटमूर्ति की स्थापनाके पश्चात् ही हुई है। किन्तु मूर्तिके स्थापनाकालको लेकर इतिहासज्ञोंमें बड़ा मतभेद है । 'बाहुबलिचरित्र' में गोम्मटेश्वरकी प्रतिष्ठाका समय निम्नप्रकार बतलाया है
१. गोम्मटसार जीवकाण्ड, गाथा ९७० ९७१ ।
तर और सारस्वताचार्य : ४२१