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अवश्य थे, पर उन्होंने उक्त गाथा वहाँसे उद्धृत नहीं की है । इसके प्रमुख दो कारण हैं। पहली बात तो यह है कि सिद्धसेनकी गाथाका रूप महाराष्ट्रो है जबकि अमृतचन्द्रके द्वारा उद्धृत गाथाएँ शौरसेनीमें हैं। दूसरी बात यह है कि अमृतचन्द्रने दोनों गाथाओंको एक साथ उद्धृत किया है जबकि सिद्धसेनके ग्रंथमें उनमेंसे एक ही पायी जाती है । अतः डॉ. उपाध्येने अमृतचन्द्रका समय गोम्मटसार जीवकाण्ड व कर्मकाण्डके कर्ता नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्तीके बाद अर्थात् ई० सन् को दशवीं शताब्दीके लगभग माना है। ___डॉ० उपाध्येके अभिमतको समीक्षा पण्डित परमानन्दजीने की है। उनका कथन है कि वि० सं० १०५५ में बने हुए धर्मरत्नाकर प्रत्यमें आचार्य अमृत. चन्द्रके कुछ पद्य उद्धृत हैं, तो अमृतचन्द्र वि० की ११ वीं शतीके पूर्वार्द्ध में रचे गये गोम्मटसारसे कैसे पद्य उद्धृत कर सकते हैं ? प्रवचनसारको प्रस्तावना लिखते समय डॉ० उपाध्येके सामने धर्मरलाकरवाली बात नहीं थी। तथा अमतचन्द्र के द्वारा प्रवचनसारको टीकामें उद्धत चारों गाथाओंमेंसे प्रथम दो गाथाएं 'षट्खण्डागम'की धवलाटीकासे उद्धृत की गयी हैं, किन्तु दूसरी दो गाथाओंमेंसे प्रथम गाथा सिद्धसेनके सन्मतितर्क में भी है, पर उसके साथवाली दूसरी गाथा गोम्मटसार कर्मकाण्डके अतिरिक्त अन्यत्र नहीं मिलती। अत: धर्मरत्नाकरमें अमृतचन्द्रके पद्योंको उद्धृत देखकर यह मानने के लिए बाध्य होना पड़ता है कि गोम्मटसारमें वह गाथा किसी अन्य स्रोतसे ग्रहण की गयी है । अथवा यह भी सम्भव है कि गोम्मटसारमें ही दोनों उक्त गाथाएं अमृतचन्द्रके प्रवचनसारकी टीकासे ली गयी हों, क्योंकि गोम्मटसार एक संग्रहग्रन्थ है। यदि गोम्मटसारकी रचना अमृतचन्द्रके पश्चात् हुई है, तो निश्चयत: ये दोनों गाथा प्रवचनसारको टीकासे ली गयी हैं। अत: अमतचन्द्रका समय आचार्य नेमिचन्द्र के पहले है। श्री पण्डित नाथूरामजी प्रेमीने अमृतचन्द्रके सम्बन्धमें जो नया प्रकाश प्राप्त किया है उसके आधारपर उन्होंने बताया है कि माधवचन्द्रके शिष्य अमतचन्द्र विहार करते हुए बाँभणबाड़ेमें आये । कविने रल्हणके पुत्र सिंह या सिद्ध नामक कविको 'पञ्जुण्णचरिउ' बनानेको प्रेरणा की । उस समय वहाँका राजा गुहिलवंशी भुल्लण था, जो मालवनरेश वल्लालका माण्डलिक था, जिसका राज्यकाल वि० सं० १२०० के आस-पास है। यदि इस उल्लेखके आधारपर मल्लहधारि माधवचन्द्र के शिष्य अमृतचन्द्रको इन अमतचन्द्रसे अभिन्न मान लिया जाये, तो अमृतचन्द्रका समय ११ वीं शताब्दीका उत्तरार्घ या १२ वीं शताब्दीका पूर्वार्द्ध सिद्ध होता है । ___ आचार्य शुभचन्द्रने अपने ज्ञानार्णवमें अमृतचन्द्र के पुरुषार्थसिद्धयुपायका ४०४ : तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा