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अवगत किया जाता था।'
जिनसेन और दशरथ गुरुका सुप्रसिद्ध शिष्य गुणभन्न हुआ, जो व्याकरण, सिद्धान्त और काव्यका परगामी था। मुणभद्रने आदिपुराणके अवशिष्ट अंशको आरम्भ करते समय जिनसेनके प्रति अपनी बड़ी भारी श्रद्धा-भक्ति समर्पित की है तथा उनके ज्ञान-चरित्रको मुक्तकण्ठसे प्रशंसा की है।
जिनसेनका चित्रकूट, बंकापुर सौर उग्राम र रहार उस समय वनवास देशको राजधानी था, जो वर्तमानमें धारवाड़ जिले में है। इसे राष्ट्रकूट अकालवर्षके सामन्त लोकादित्यके पिता केयरसने अपने नामसे राजधानी बनाया था। बटग्राम और बटपदको एक मानकर कुछ विद्वान् बड़ौदाको बटग्राम या बटपद कहते हैं । चित्रकूट भी वर्तमान चित्तोड़से भिन्न नहीं है। इसी चित्रकूटमें एलाचार्य निवास करते थे, जिनके पास जाकर वीरसेनस्वामीने सिद्धान्तग्रन्थों का अध्ययन किया था।
जिनसेनके समयमें राजनीतिक स्थिति सुदृढ़ थी तथा शास्त्रसमुन्नतिका यह युग था। इनके समकालीन नरेश राष्ट्रकूटवंशी जयतुङ्ग और नृपतुङ्ग अपरनाम अमोघवर्ष (सन् ८१५-८७७ ई०) थे। इनकी राजधानी मान्यखेटमें उस समय विद्वानोंका अच्छा समागम था। अमोघवर्ष स्वयं कवि और विद्वान था । उसने 'कविराजमार्ग' नामक एक अलङ्कारविषयक ग्रन्थ कन्नड़ भाषामें लिखा है । अमोघवर्ष जिनसेनका बड़ा भक्क था। महावीराचार्य के 'गणित्तसारसंग्रह और 'संस्कृतकाव्य प्रश्नोत्तररत्नमाला के उल्लेखोंसे समध है कि अमाघवर्षने जेन दीक्षा ग्रहण कर ली थी। अमोघवर्ष के समयमें केरल, मालवा, गर्जर और चित्रकूट भी राष्ट्रकूट राज्यमें सम्मिलित थे। श्री पं० नाथूरामजी प्रेमीका अनुमान है कि बड़ौदा भी अमोघवर्ष के राज्य में सम्मिलित था । आनतेन्द्र कोई राष्ट्रकूट राजा या सामन्त रहा होगा, जिनके बनना मन्दिा धवलाटीका लिखो गयी। अतएव जिनसेनका सम्बन्ध चित्रकुट के साथ रहने तथा अमोघवर्ष द्वारा सम्मानित होनेसे इनका जन्मस्थान महाराष्ट्र और कर्याटकको सीमाभूमिको अनुमानित किया जा सकता है। १. उत्तरपुराणप्रशस्ति श्लोक ११-१३ तक । २. आगल्य चित्रकूटात्ततः स भगवान् गुरोरनुज्ञानात् । ३. उत्तरपुराण प्रशस्ति ३२-३४ तथा श्रुतावतार श्लोक-१७९ । ४, महावीर गणितसार, शोलापुर संस्करण, १३, १४८ । ५. आदिपुराण, भारतीय ज्ञानपीठ प्रथम संस्करण प्रस्तावना, पृ० १९ 1
श्रुतधर और सारस्वताचार्य : ३७