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प्रभावशाली एवं स्वयशाभिलापी हुआ इस राक्षस राजा से प्रवर्तित वंश राधासवंश कहलाने लगा 1 ये राक्षस जनसाधारणकी रक्षा करते थे, इसलिये भी राक्षस कहलाने लगे । अतएव रावणकी राक्षस मानना भूल है । वे सम्भ्रान्त मानव थे, राक्षस नहीं । इस प्रकार कविने राक्षस और दानरवंशकी विशिष्ट व्याख्याएँ प्रस्तुत की है ।
छन्द.
अलंकार आदिको दृष्टिसे भी यह ग्रन्य महत्वपूर्ण है। इसमें ४१ प्रकारके छन्दों का व्यवहार किया गया है।
क्रमसं ウ
१
२
३
४
19
4
a.
१०
११
१२
१३
१४
१५
१६
१७
१८
नामछन्द
अनुष्टुप् अतिश्चिरा
अपवर्क
अश्चललितम्
आर्या
आर्यावृत्तम्
आर्याछन्द
आर्यागीति
इन्द्रवज्रा
इन्द्रवदना
उपजाति
उपेन्द्रवज्रा
कोकिलकच्छन्द
चण्डी
चतुष्पदिका
द्रुतविलम्बित
दोधक
त्रोटक
पृथ्वी
प्रहर्षिणी
१९
२०
२१
२२
२३
१. पद्मवरित ५१३८६ |
२८८ : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा
पुष्पितामा प्रमाणिका
भद्रक
संख्या
१६४४०
१
१
१२
८
४९
२७
१२
२
१३४
३३
१
१
२
१०
१०
१
३