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मोड़ना है। इसी प्रकार अग्निपरीक्षामें अग्नि-कुण्डका जल-कुण्ड होना भी योग्यतातत्वके अन्तर्गत है।
अवसर
___ रसपुष्टि के लिए यथासमय रसमय प्रसंग या सन्द का प्रस्तुतीकरण कथानकनियोजनमें अवसरतत्व है । पवनन्जय विलाप करतो हुई अंजनापर, दष्टिपात भी नहीं करता है, किन्तु सूर्यास्तके समय पतिवियोगमें विलपती हुई चकन्दीको देखकर अंजनाको मानसिक स्थितिका अनुमान लगा, पवनञ्जयका युद्ध के लिए जाते हुए मार्ग मेंसे लौट आना अवसरतत्त्वके अन्तर्गत है । इसो प्रकार भरतद्वारा रामसे राज्य करनेका आग्रह करनेपर भी रामकी अस्वीकृत्तिके कारण उन्होंकी आज्ञासे निश्चित समय तक राज्य स्वीकार करना भी कथानकका अवसरतत्त्व है। रथनूपुरके मायामयी परकोटेको तोड़नेके लिए नलकुवरकी पत्नोका प्रसाधन भी अवसरतत्त्वके अन्तर्गत है। सत्कार्यता
सत्कायंतासे तात्पर्य इस प्रकारसे संदर्भोके संयोजनसे है, जो स्वतन्त्ररूपमें अपना अस्तित्व रखकर प्रसंगगर्भत्वको प्राप्त हो किसी कार्यविशेषकी अभिव्यंजना करते हैं। रावणद्वारा विद्यासिद्धिहेतु तपस्या करना, देवोंका उपद्रव कर उसको अपने लक्ष्यसे विचलित करनेका प्रयत्न करना, दशरथद्वारा कैकयीको स्वयम्वरमें प्राप्त कर, युद्ध में सहयोग देनेपर बर प्रदान करना आदि प्रसंग स्वतन्त्र होते हुए भी मूलकथानकमें गभित होकर कार्याचशेषकी अभिव्यंजना कर रहे हैं। रूपाकृति
कथावस्तुमें इतिवृत्तका वस्तुव्यापारोंके साथ उचित एवं संतुलितरूपमें नियोजन द्वारा रूपाकृति उपस्थित करना, रूपाकृति नामक तत्त्व है। मूल कथानकके साथ अवान्तर कथाओंका संमिश्रण अंग-अंगीभाव द्वारा करना ही इस तत्त्वका कार्य है। कवि कथावस्तुका विस्तार न करके छोटी-छोटी कथाओं द्वारा भी रूपाकृति तत्वका नियोजन कर सकता है । 'पप्रचरितम्' में राम-लक्ष्मण वनमें निवास करते हैं, लक्ष्मणद्वारा शम्बकका वध हो जाता है । शोकाकुलिता उसकी मासा चन्द्रनखा राम-लक्ष्मणको देखकर मोहित हो, अभिलाषाकी पूर्ति न होनेपर रुष्ट हो जाती है और अपने पतिसे उल्टा-सीधा भिड़ा देती है। इस प्रकारको अवान्तरकथाएँ पप्रचरितमें कई दशक हैं। इन अवान्सरकथाओंका २८६ : तीर्थकर महावीर और उनकी माचार्य-परम्परा