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"मां भांक्षीविधमम्" स्तुति द्वारा अपना शरीर स्वस्थ कर चमत्कार उपस्थित किया। ___ इन चमत्कारोंके अनन्तर किसी जैनधर्मद्वेषीने राजासे कहा कि यदि जैनोंमें कोई ऐसा चमत्कारी हो, तभी जैन यहाँ रहें, अन्यथा इन्हें नगर से निर्वासित कर दिया जाय । मानतुंग आचार्यको बुलाकर राजाने कहा कि आप अपने देवताओंके कुछ चमत्कार दिखलाइये।
आचार्य-हमारे देवता वीतरागी हैं, उनमें क्या चमत्कार हो सकता है। जो मोक्ष चला गया है, वह चमत्कार दिखलाने क्या आयेगा । उनके किंकर देवता हो अपना प्रभाव दिखलाते हैं। अतः यदि चमत्कार देखना है, तो उनके किंकर देवताओंसे अनुरोध करना होगा । इस प्रकार कहकर अपने शरीरको ४४ हयकड़ियों और बेड़ियोंसे कसवाकर उस नगरके श्रीयुगादिदेवके मन्दिरके पिछले भागमें बैठ गये। "भक्तामरस्तोत्र के प्रमावसे उनकी बेड़ियां टूट गयीं
और मन्दिर अपना स्थान परिवर्तित कर उनके सम्मुख उपस्थित हो गया । इस प्रकार मानतुगने जिनशासनका प्रभाव दिखलाया।
मानतुंगके सम्बन्धमें एक इतिवृत्त श्वेताम्बराचार्य गुणाकरका उपलब्ध है। उन्होंने भक्तामरस्तोत्रवृत्तिमें, जिसकी रचना वि० सं० १४२६ में हुई है, प्रभावकचरितके अनुसार मयर और बाणको वसूर और जामाता बताया है तथा इनके द्वारा रचित सूर्यशतक और चण्डोशतकका निर्देश किया है। राजाका नाम वृद्धभोज है, जिसको सभामें मानतुंग उपस्थित हुए थे।
उपयुक्त विरोधी आख्यानों पर दृष्टिपात करनेसे तथा वल्लालकविरचित भोजप्रबन्ध नामक ग्रन्यका अवलोकन करनेसे निम्नलिखित तथ्य उपस्थित होते हैं
१. मयूर, बाण, कालिदास और माघ बादि विभिन्न समयवर्ती प्रसिद्ध कवियोंका एकत्र समवाय दिखलानेको प्रथा १० वीं शतीसे १५ वीं शती तकके साहित्यमें प्राप्त होती है।
२. मानतूंगको श्वेताम्बर आख्यानोंमें पहले दिगम्बर और पश्चात् श्वेताम्बर माना गया है । इसी प्रकार दिगम्बर लेखकोंने उन्हें पहले श्वेताम्बर पश्चात् दिगम्बर लिखा है। यह कल्पना सम्प्रदायव्यामोहका ही फल है। दिगम्बर और श्वेताम्बर सम्प्रदायोंमें जब परस्पर कटुता उत्पन्न हो गयी और मान्य आचार्योंकी अपनी ओर खींच-तान होने लगी, सो इस प्रकार विकृत इतिवृत्तोंका साहित्यमें प्रविष्ट होना स्वाभाविक है । २५० : तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा