________________
आधार बतलाकर उनमें नरकोंकी संख्या और उन नरकोंमें बसनेवाले नारकी जीवोंकी दशा एवं उनकी दीर्घ आयु आदि बतलायो गयी है। मध्यलोकके वर्णनमें द्वीप, समुद्र, पर्वत, नदियां एवं क्षेत्रोंका वर्णन करनेके पश्चात् मध्यलोकमें निवास करनेवाले मनुष्य और तियंञ्चोंकी आयु भी बतलायी गयो है।
चतुर्थ अध्यायमें ४२ सूत्रों द्वारा ऊर्ध्वलोक या देवलोकका वर्णन किया गया है । इसमें देवोंके विविध भेदों, ज्योतिमण्डल, तथा स्वर्गलोकका वर्णन है ।
दार्शनिक दृष्टिसे पंचम अध्याय महत्वपूर्ण है। यह ४२ सूत्रोंमें निबद्ध है। इसमें जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल इन छ: द्रव्योंका वर्णन आया है। इसके अतिरिक्त प्रत्येक द्रव्यके प्रदेशोंको संख्या उनके द्वारा अवगाहित क्षेत्र और प्रत्येक द्रव्यका कार्य आदि बतलाये हैं। पुद्गलका स्वरूप बतलाते हुए उसके भेद, उसको उत्पत्तिके कारण, पोद्गलिक बन्धकी योग्यताअयोग्यता आदि कथन है । अन्तमें सत, द्रव्य, गुण, नित्य और परिणामका स्वरूप प्रतिपादित कर कालको भी द्रव्य बतलाया है ।
षष्ठ अध्याय २७ सूत्रों में प्रथित है। इस अध्यायमें आम्रवतत्वका स्वरूप उसके भेद-प्रभेद और किन-किन कार्यो के करनेसे किस-किस कर्मका आस्रव होता है, का वर्णन आया है।
सप्तम अध्यायमें ३९ सूत्रों द्वारा प्रतका स्वरूप, उसके भेद, यतोंको स्थिर करनेवाली भावनाएं, हिसादि पाँच पापोंका स्वरूप सप्त शील, सल्लेखना, प्रत्येक प्रत और शोलके अतिचार, दानका स्वरूप एवं दानके फलमें तारतम्य होनेके कारणका कथन आया है। ___ अष्टम अध्यायमें २६ सूत्र हैं । कर्म-बन्धके मूल हेतु बतलाकर उसके स्वरूप तथा भदोंका विस्तारपूर्वक कथन करते हुए आठों कर्मोके नाम प्रत्येक कर्मको उत्तरप्रकृतियां, प्रत्येक कर्मके स्थितिबन्ध, अनुभागबन्ध और प्रदेशबन्धका स्वरूप बतलाया है।
नवम अध्यायमै ४७ सूत्रों द्वारा संवरका स्वरूप, संवरके हेतु, गुप्ति, समिति, दश धर्म, द्वादश अनुप्रेक्षा वाईस परोषह, चारित्र और अन्तरंग तथा बहिरंग सपके भेद बतलाये गये हैं। ध्यानका स्वरूप, काल, ध्याता, ध्यानके भेद एवं पांच प्रकारके निम्रन्थ साधुनोंका वर्णन वाया है।
दशम अध्यायमें केवल ९ सूत्र हैं। इसमें केवलज्ञानके हेतु, मोक्षका स्वरूप, मुक्तिके पश्चात् जीयके उर्ध्वगमनका दृष्टान्तपूर्वक सयुक्तिक समर्थन तथा मुक्त जीवोंका वर्णन आया है। १५८ : तीर्थंकर महावीर और उनकी प्राचार्म-परम्परा