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चिन्ह स्थापित हैं । यह स्थान मगधमें है । दूसरी पावा उत्तर प्रदेश के देवरिया जिलेमें कुशीनगर के समीप है । डॉ० शास्त्रीने मगघवर्ती पावाको हो निर्वाणभूमि माना है ।
बिम्बसार श्रेणिक भगवान महावीरका परम भक्त था । उसकी मृत्यु डॉ० शास्त्रीने भगवान महावीरके निर्वाणके बाद मानी है, उन्हें ऐसे उल्लेख मिले हैं । किन्तु यह ऐतिहासिक प्रसंग विचारणीय है ।
उन्होंने जैन तत्त्व-ज्ञानका भी बहुत विस्तारसे विवेचन किया है और प्रायः सभी आवश्यक विषयोंपर प्रकाश डाला है । दूसरा, तीसरा तथा चौथा खण्ड तो एक तरह से जेनला हित्यकर इतिहास जैसा है। संक्षेपमें उनकी यह बहुमूल्य कृति अभिनन्दनीय है । आशा है इसका यथेष्ट समादर होगा ।
कैलाशचन्द्र शास्त्री
१२ तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा