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सिंहकेतुने कृत्रिम और अकृत्रिम जिनालयोंकी वंदना की और देवगसिके भोगोंको क्षणभंगुर समझकर अनासक्तभावसे इस गतिमें निवास किया। आयुके अन्तमें समभावोंसे प्राणविसर्जन कर विद्याधरनरेश हुआ। कनकोज्ज्वलपर्याय : उदित हुए साघमा-अंकुर
घातकीखण्डद्वीपके पूर्व विदेहमें मंगलावतं देश है। इसके मध्यमें विजयार्द्ध पर्वत है । इस पर्वतकी उत्तरश्रेणी में कनकप्रभ नामका नगर स्वर्णमंडित प्रासाद, प्राकार और जिनालयोंसे सुशोभित है। नगरका वैभव और उसका रम्यरूप पथिकोंको दूरसे ही अपनी ओर आकृष्ट करता है। सरोवर, उद्यान और कूप नगरके सौन्दर्यवृद्धिमें गुणात्मक वृद्धि कर रहे हैं। मानव या विद्याधरोंकी तो बात ही क्या, प्रकृति भी इसके यथार्थ नामका विज्ञापन कर रही है।
इस नगरका अभिगति विद्याधर रान लगभगा और मां चना चाली कनकमाला नामकी उसकी पत्नी थी। इन दोनोंके यहाँ महावीरका जीव वह सिंहकेतु देव स्वर्गसे चयकर कनकोज्ज्वल नामका पुत्र हुआ । पिता कनकपुखने पुत्रोत्पत्तिका समाचार अवगतकर जिनालय में जाकर कल्याण करनेवाली पंचकल्याणक पूजा की। उसने दीन-दुखियों एवं सत्पात्रोंको यथोचित दान दिया । वार्धापन-संस्कार सम्पन्न करनेके हेतु विभिन्न प्रकारकी कलागोष्ठियोंकी योजना की। नृत्य-गान सम्पन्न हुए। पुरोधाओंने मंत्रोच्चारकर नवजात शिशुको आशीर्वाद प्रदान किया । शिशु द्वितीयाके चन्द्रमाके समान क्रमशः वृद्धिगत होने लगा और आठ वर्षको अवस्थामें उसका विद्या-संस्कार सम्पन्न किया गया । कनकोज्ज्वलको प्रतिभासे सभी गुरुजन आश्चर्यचकित थे। उसने अनेक शास्त्र और कलाओंमें अल्प समयमें ही प्रवीणता प्राप्त कर ली। किशोर कनकोउञ्चल अपनी मेषा, मनीषा और मानवोचित गुणोंके कारण परिजन-पुरजन सभीका प्रेम भाजन बन गया। उसकी मधुर वाणी सुनकर सभी हर्षित होते और उसे प्यार करते थे । जब बड़े गुरुजनोंको भी किसी विषयमें आशंका या कठिनाई उपस्थित होती, तो वे इस प्रतिभामूर्ति युवासे परामर्श करते । __ जब कनकोज्ज्वलने युवावस्थाकी देहलीपर पैर रखा तो माता-पिताके मनमें उसका पाणिग्रहण सम्पन्न कर देनेकी भावना उदित हुई। कुमारके मामाका नाम हर्ष था और वह कुमारके गुणोंमें अत्यधिक अनुरक्त था। हर्षके कनकावती नामको सुन्दर कन्या थी, जो सभी गुणोंसे परिपूर्ण थी। मातुल हर्षने अपनी पत्नी और मित्रोंसे स्वीकृति लेकर अपनी कन्या कनकावतीका विवाह कनकोज्ज्वलके साथ सम्पन्न कर दिया।
तीर्थकर महावीर और उनकी देशना : ४५