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वेशावकाशिक व्रत
दिग्व्रतमें जीवन पर्यन्त के लिए दिशाओंका परिमाण किया जाता है । इसमें किये गये परिमाणमें कुछ समय के लिए किसी निश्चित देश पर्यन्त आनेजानेका नियम ग्रहण करना देशावका शिकव्रत है । इस व्रतके पांच अतिचार हैं
१. आनयन - मर्यादासे बाहरकी वस्तुका बुलाना ।
२. प्रेष्यप्रयोग - मर्यादासे बाहर स्वयं न जाना. किन्तु सेवक आदिको आज्ञा देकर वहाँ बैठे हुए ही काम करा लेना प्रेष्यप्रयोग है ।
३. शब्दानुपात - मर्यादा के बाहर स्थित किसी व्यक्तिको शब्दद्वारा बुलाना ।
४. रूपानुपात - मर्यादित क्षेत्रके बाह्रसे आकृति दिखाकर संकेतद्वारा बुलाना ।
५. पुद्गलक्षेप - मर्यादाके बाहर स्थित व्यक्तिको अपने पास बुलाने के लिए पत्र, तार आदिका प्रयोग करना ।
अनर्थदण्डव्रत
बिना प्रयोजनके कार्यों का त्याग करना अनर्थदण्डवत कहलाता है । जिनसे अपना कुछ भी लाभ न हो और व्यर्थ ही पापका संचय होता हो, ऐसे कार्यों कीअनर्थदण्ड कहते हैं और उनके स्थागको अनर्थदण्डव्रत कहा जाता है। अनर्थrush निम्न पांच भेद हैं
१. अपध्यान – दूसरोंका बुरा विचारता ।
२. पापोपदेश -- पापजनक कार्योंका उपदेश देना ।
३. प्रमादाचरित - आवश्यकता के बिना वन कटवाना, पृथ्वी खुदवाना, पानी गिराना, दोष देना, विकथा या निन्दा आदिमें प्रवृत्त होना ।
४. हिंसादान - हिंसा के साधन अस्त्र शस्त्र, विष, विषैली गैस आदि सामग्रीका देना अथवा संहारक अस्त्रोंका आविष्कार करना
५. अशुभश्रुति - हिंसा और राग आदिको बढ़ानेवाली कथाओं का सुनना, सुनाना अशुभश्रुति है ।
शिक्षाव्रतके चार भेद हैं- १. सामायिक, २. प्रोषधोपोवास, ३. भोगोपभोगपरिमाण और ४ अतिथिसंविभाग ।
सामायिक – तीनों सन्ध्याओंमें समस्त पापके कर्मोसे विरत होकर नियत स्थानपर नियत समयके लिए मन, वचन और कायके एकाग्र करनेको सामायिक
५२२ : तीपंकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा
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