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सावधानीपूर्वक सत्याणुवतका पालन करनेके लिए निम्नलिखित अतिचारोंका त्याग आवश्यक है।
१. मिथ्योपदेश-सन्मार्ग पर लगे हुए व्यक्तिको भ्रमवश अन्य मार्ग पर ले जानेका उपदेश करना मिथ्योपदेश है। असत्य साक्षी देना और दूसरे पर अपवाद लगाना भी मिथ्योपदेशके अन्तर्गत है ।
२. रहोभ्याख्यान-गुप्त बात प्रकट करता रहोभ्याख्यान है। विश्वासघात करना भी इसाम समिलिए है ;
३. कूटलेखक्रिया-झूठे लेख लिखना, झूठे दस्तावेज तैयार करना, झूठे हस्ताक्षर करना, गलत बही, खाते तैयार कराना, नकली सिक्के तैयार करना अथवा नकली सिक्के चलाना कूटलेखक्रिया है।
४. न्यासापहार-कोई धरोहर रखकर उसके कुछ अंशको भूल गया, तो उसकी इस भूलका लाभ उठाकर धरोहरके भूले हुए अंशको पचानेकी दृष्टिसे कहना कि जितनी धरोहर तुम कह रहे हो उतनी ही रस्ती थी, न्यासापहार है ।
५. साकारमन्त्रभेद-चेष्टा आदि द्वारा दूसरेके अभिप्रायको ज्ञात कर ईविश उसे प्रकट कर देना साकारमन्त्रभेद है। इस व्रतका सम्यक्तया पालन करने के लिए क्रोध, लोभ, भय और हास्यका त्याग करना तथा निर्दोष वाणीका व्यवहार करना आवश्यक है। अचार्यानुवर
मन, वाणी और शरीरसे किसीको सम्पत्तिको बिना आज्ञा न लेना अचोCणुव्रत है। स्तेय या चोरीके दो भेद हैं--(१) स्थूल चोरी और (२) सूक्ष्म चोरी । जिस चोरीके कारण मनुष्य चोर कहलाता है, न्यायालयसे दंडित होता है और जो चोरी लोकमें चोरी कही जाती है, वह स्थूल चोरी है। मार्ग चलतेचलते तिनका या कंकड़ उठा लेना सूक्ष्म चोरोके अन्तर्गत है।
किसीके घरमें सेंध लगाना, किसीके पॉकेट काटना, ताला तोड़ना, लूटना, ठगना आदि चोरी है। आवश्यकतासे अधिक संग्रह करनाया किसी वस्तुकाअनुचित उपयोग करना भी एक प्रकारसे चोरी है। अचौर्याणुव्रतके धारी गृहस्थको एकाधिकारपर भी नियन्त्रण करना चाहिए । समस्त सुविधाएं अपने लिए सञ्चित करना तथा आवश्यकताओंको अधिक-से-अधिक बढ़ाते जाना भी स्तेयके अन्तर्गत है। संसारमें धनादिककी जितनी चोरी होती है, उससे कहीं अधिक विचार एवं भावोंकी भो चोरी होती है। अतएव' अचोय भावना द्वारा भौतिक आवश्यकताओंको नियन्त्रित करना चाहिए। वस्तुतः जीवनको किसी भी प्रकारको ५१८ : तीर्थकर महावीर और उनकी प्राचार्य-परम्परा