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चिन्तित थे कि तोर्थंकर महावीरने अपने तपस्या - कालमें मौन रहकर साधनाकी, उन्होंने कोई देशना नहीं दी। उनके सम्पर्क से दृष्टिविष जैसे सपं और शूलपाणि जैसे यक्ष अवश्य उपकृत हुए थे । पूर्वतीर्थंकर कि समान सर्वभूत- हितार्थं महावीरकी दिव्यध्वनिका लाभ हमें अवश्य होना चाहिये । पर यह क्या ? दिन गिनते-गिनते पैंसठ दिन बीत गये और महावीरकी दिव्यवाणी प्रकट नहीं हुई । श्रोताओंने मनको समझाया कि अभी काललन्धि नहीं आयी है। यही कारण है कि प्रभुकी देशनामें बिलम्ब है ।
इन दिनों में सभा मण्डपमें कितने ही लोग आये, कुछ आकर लौट गये और कुछ भव्यप्राणी दिव्यध्वनिकी प्रतीक्षा करते हुए उपस्थित रहे ।
दिन-पर-दिन और रात-पर-रात व्यतीत होती गयी; पर तीर्थंकरकी वाणी मुखरित न हुई । उपस्थित जनसमुदाय निराश होने लगा और बाजीके अवरुद्ध होनेके कारणकी जिज्ञासा करने लगा। सभी लोग स्तब्ध थे, बसमंजस - में थे, पर समाधान किसीके पास न था । सब जानते थे कि तीर्थंकर महावीर मूकवली नहीं । उनका उपदेश अवश्य होगा । पर कब होगा ? और अबतक क्यों अवरुद्ध है ? इसकी जानकारी किसीको नहीं थी ।
पैंसठ दिनों तक समवशरण भी एक स्थानपर नहीं रह सका और तीर्थ कर महावीर विहार करते हुए राजगृहके निकट विपुलाचलपर आये । यहाँ भी कुबेरने पूर्ववत् सभा मण्डप - समवशरणकी रचना की । असंख्य श्रोता इस सभा में भी उपस्थित थे, पर गतिरोध ज्यों-का-त्यों बना हुआ था । तीर्थंकर महावीरकी वाणीके प्रकट न होनेसे सौधर्म इन्द्रको चिन्ता उत्पन्न हुई और उसने ज्ञान-गंगाके अवरुद्ध रहने के कारणोंको जानकारी चाही । सौधर्म इन्द्रने अवधिज्ञानसे ज्ञात किया कि सम्यक् और यथार्थ ज्ञानी गणधर के अभाव में ज्ञान गंगा रुकी हुई है। उसे अवतरित करने के लिये किसी भगीरथकी आवश्यकता है। जब तक सच्चा जिज्ञासु और श्रुतज्ञानका धारक व्यक्ति उपस्थित न होगा, तब तक तीर्थंकर की दिव्यध्वनि सम्भव नहीं है । समवशरण में इस समयकोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं है, जो तीर्थंकर महावीरकी वाणीको सुने, समझे और ठीक-ठीक उसकी व्याख्या कर सके। जब तक ज्ञानकी गूढ़ताका ज्ञाता यथास्थितिका संवन करनेवाला व्यक्ति इस सभा में उपस्थित नहीं होगा, तब तक तीर्थंकरकी वाणी मुखरित नहीं हो सकेगी। अतएव मुझे गणघ' की खोज करनी है ।
जिस प्रकार तीर्थकर तीर्थ का निर्माता होता है और श्रुतरूप ज्ञानपरम्पराका पुरस्कर्ता होता है, उसी प्रकार- गणधर तीर्थ-व्यवस्थापक, नियोजक
१८४ तीर्थंकर महावीर और उनका आचार्य-परम्परा