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जाती है । ऊँच-नीच, रंक राव, शत्रु-मित्र, कृष्ण-गौर आदिके भीतर रहने वाला भेद-भाव समाप्त हो जाता है और साम्य भावका तूर्यनाद होने लगता है | अहिंसा, सत्य और शान्तिका आलोक सर्वत्र व्याप्त हो जाता है ।
तीर्थंकरके इस महनीय पदको प्राप्ति एकाएक सम्भव नहीं है। इसकी प्राप्तिके लिये अनेक जन्मोंमें उग्र तपश्चरण करना पड़ता है। राग-द्वेष और मोहको जीतने के लिये कठोर प्रयास करना पड़ता है । संयम और ध्यानकी साधना करनी होती है, साथ ही कषाय और योगका निरोध कर संवर एवं निर्जराकी प्राप्ति करनी पड़ती है । वास्तव में अनेक जन्मों तक आत्म-शोधनका प्रयास करनेपर हो यह तीर्थंकरपद प्राप्त होता है ।
अतीत पर्यायोंमें महावीर : परिभ्रमण
महावीरके जीवने आत्मोत्थानके लिये अनेक जन्मोमं साधना सम्पन्न की । मनुष्य और तिर्यञ्च पर्यायोंके अतिरिक्त उन्हें नरकादि पर्यायों में भी परिभ्रमण करना पड़ा है । तत्त्वज्ञान और आत्मानुभूतिकी प्राप्तिके क्रम में कभी वे पथभ्रष्ट हुए, पतित हुए, तो कभी वे साधनाके उच्च शृंग पर आरूढ़ हुए । यह सत्य है कि महावीरका लक्ष्य अनेक अतीत जन्मोंमें भी सत्यकी साधना रहा है । वे सत्य के मूल स्वरूपको पकड़नेके लिये सचेष्ट रहे हैं। उनके अतीत जन्मोंकी साधना इस बातका प्रमाण है कि पंथ या सम्प्रदायकी संकुचित दृष्टि सत्यको सान्त और खण्डित कर डालती है । साम्प्रदायिक भावना सत्यको विकृत कर देती है । महावीरके जीवने जब-जब साम्प्रदायिक संकुचित दृष्टिकोणको अपनाया तब-तब वे साधनाके पथ से विचलित होकर निम्न मार्गकी ओर परावृत्त हुए। आत्मा शुद्ध स्वरूपको अवगत किये बिना उनकी साधना सफल नहीं हो सकी। अतः भवबन्धनोंसे विमुक्त होनेके लिये आत्म-निष्ठा, तत्त्वज्ञान और आत्माचरण नितान्त आवश्यक है । जब तक कर्मका आवरण विद्यमान है, तबतक साधक के जीवन में पूर्ण प्रकाश प्रादुर्भूत नहीं हो सकता !
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विवेक और वैराग्यकी साधना ही भवबन्धन से छुटकारा दिला सकती है और यही निर्वाण प्राप्तिका साधन है । यहाँ यह स्मरणीय है कि प्रत्येक आत्मा में परमात्म ज्योति विद्यमान है, प्रत्येक चेतनमें परम चेतन समाहित है | चेतन और परम चेतन दो नहीं हैं, एक हैं । अशुद्धसे शुद्ध होनेपर चेतन ही परम चेतन बन जाता है। कर्मावरण के कारण आत्मा संसार में भटकती है और जब कर्म बन्धनोंसे छुटकारा मिल जाता है, तब वह शाश्वत सुखको प्राप्त कर लेती है । महावीरकी अतीत जीवन गाथा भी ऐसी है, जो मानव को मानवता की ओर अग्रसर कर परमात्मा बनने की प्रेरणा देतो है ।
तीर्थंकर महावीर और उनकी देशना २५