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थे कि आज किसके भाग्य खुलते हैं ? कौन ऐसा पुण्यात्मा है, जो तीर्थकर महावीरको आहार देता है ? इस प्रकार नगरको उत्सुकता देखते ही बनती थी। भाग्योदय हुआ बन्द नाका
चन्दना चेटककी पुत्री रानी त्रिशलाकी छोटी बहन थी। चन्दना और त्रिशलाके बीच में एक और बहन थी मृगा | पर भाग्यका चक्र विचित्र होता है । कर्मोदयसे त्रिशला और मृगावतीको तो राजभवन और पुष्पशेय्या प्राप्त हुई, पर बेचारी चन्दनाको कांटोंकी झाड़ियां ही उपलब्ध हुईं। बड़े दुःख भोगे चन्दनाने । यहाँ तक कि उसे दासी भी बनना पड़ा।
चन्दनाका आरम्भिक जीवन बड़ा ही गर्वित था । वह राजकन्या तो थी ही, पर अपने अद्भुत रूपलावण्यके कारण वैशालीके समस्त उपनगरोंकी शोभा थी । उन्नत ललाट, काञ्चन दिव्य वर्ण एवं कृश शरीर सहजमें हो जनमानसको आकृष्ट कर लेता था । पुरजन, परिजन सभीका विश्वास था कि चन्दनाके समान दिव्य कुमारी देव, नाग, गन्नों में भी नहीं हो सकती।
वसन्तके दिन थे। राजोद्यानमें पुष्प विकसित थे और भौरे उनपर मधुर स्वरमें गुंजन कर रहे थे। चन्दना भी उद्यान में घूम-घूमकर गुनगुना रही थी और भ्रमरोंके स्वर में स्वर मिला रही थी। उसके कोकिल कण्ठसे निकली हुई वाणी सहजमें ही सरस और मधुमय हो जाती थी। उसके स्वरका मिठास अपूर्व था । चन्दनाका अपहरण
हठात् एक विद्याधरकी दृष्टि चादनापर पड़ी। वह आकाशमार्गले विमान द्वारा जा रहा था, पर चन्दनाके अपूर्व स्वर-माधुर्य ने उसे स्तब्ध कर दिया । चन्दना उसके मनःप्राणमें समा गयी। वह नीचे उतरा और चन्दनाको लेकर फिर आकाश-मार्गसे उड़ चला। चन्दनाने शक्तिभर विरोध किया, पर विद्या. धरपर इसका कुछ भी प्रभाव न पड़ा ।
चन्दना रोयी-चिल्लायी। नाखनोंसे अपने शरीरको क्षत-विक्षत किया, पर विद्याधरने उसे न छोड़ा। विद्याधर चन्दनाके शोलको नष्ट करना चाहता था और चन्दना सभी प्रकारसे अपने शीलको रक्षा करने में तत्पर थी। संयोगकी बात कि विद्याधरकी धर्मपत्नी कहींसे घूमते हुए वहीं आ पहुँची। विद्याधर अब क्या करता ? पत्नीसे भयभीत होकर उसने चन्दनाको भयानक बनमें छोड़ दिया।
निरीह चंदना उस भयानक वनमें इधर-उधर घूमने लगी। चारों ओर हिंसक पशु और अकेली चन्दना । भूख और प्याससे उसकी आंतें सूखी जा रही थीं, पर १६८ : तीकर महावीर और उनकी बाचार्य-पराम्परा