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द्वितीय परिच्छेव : अपभ्रंश कवि एवं लेखक
इस परिच्छेद में चतुर्मुख स्वयंभूदेव, त्रिभुवन स्वयंभू, पुष्पदन्त, धनपाल, घबल, हरिषेण, वीर, श्रीचन्द्र, नयनन्दि, श्रीधर प्रथम, श्रीधर द्वितीय, श्रीवर तृतीय, देवसेन, अमरकीर्ति, कनकामर सिंह लाखु, यशः कीर्ति, देवचन्द्र, उदयचन्द्र, रइधू, तारणस्वामी आदि पैंतालीस अपभ्रंश कवियों-लेखकों और उनकी रचनाओंका संक्षिप्त परिचय निबद्ध है ।
तृतीय परिच्छेद: हिन्दी तथा देशज भाषा कवि एवं लेखक
इसमें बनारसीदास, रूपचन्द्र पाण्डेय, जगजीवन, कुंवरपाल, भूधरदास द्यानतराय, किशनसिंह, दौलतराम प्रथम, दौलतराम द्वितीय, टोडरमल्ल, भागचन्द, महाचन्द आदि पच्चीस हिन्दी कवियों और लेखकों का उनको कृतियों सहित परिचय अङ्कित है । अन्य देशज भाषाओंमें कन्नड़, तमिल और मराठी के प्रमुख काव्यकारों एवं लेखकों का भी परिचय दिया गया है । चतुर्थ परिच्छ ेद : पट्टावलियां
इस परिच्छेद में प्राकृत- पट्टावल, सेनगण-पट्टावलि, नन्दिसंघबलात्कारगण-पट्टावलि, आदि नौ पट्टावलियां संकलित हैं। इन पट्टावलियों में कितना ही इतिहास भरा हुआ है, जो राष्ट्रीय, सांस्कृतिक और साहित्यिक दृष्टियों से बड़ा महत्त्वपूर्ण एवं उपयोग है ।
इस प्रकार प्रस्तुत महान् ग्रन्यसे जहाँ तीर्थंकर वर्धमान महावीर और उनके सिद्धान्तोंका परिचय प्राप्त होगा, वहीं उनके महान् उत्तराधिकारी इन्द्रभूति आदि गणधरों, श्रुतकेवलियों और बहुसंख्यक आचार्यों के यशस्वी योगदान - त्रिपुल वाङ्मय निर्माणका भी परिज्ञान होगा । यह भी अवगत होगा कि इन आचार्यों ने समय-समय पर उत्पन्न प्रतिकूल परिस्थितियों में भी तीर्थकर महावीरकी अमृतवाणीको अपनी साधना, तपश्चर्या, त्याग और अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोग द्वारा अब तक सुरक्षित रखा तथा उसके भण्डारको समृद्ध बनाया है ।
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