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________________ { गाथा : ३३-३४ ] पंचमो महाहियारो विवक्षित द्वीप-समुद्रका वलय-व्यास प्राप्त करनेकी विधि बाहिर-सई-मज्झे, लक्ख-तयं मेलिवण चउ-भजिये । इच्छिय - दीवड्ढीणं, वित्थारो होदि पलयाणं ॥३३।। प्रर्व-विवक्षित द्वीप-समुद्रक बाह्य-सूची-व्यासके प्रमाणमें तीन-लाख जोड़कर चारका भाग देनेपर वलय-व्यासका प्रमाण प्राप्त होता है ।।३३॥ विशेषार्थ-यहाँ कालोदधि समुद्र विवक्षित है। इसका सूची-व्यास २६ लाख योजन है । इसमें तीन लाख जोड़कर ४ का भाग देनेपर कालोदधिके वलय व्यासका प्रमाण ( २९००००० + ३००००० ): ४=८ लाख योजन प्राप्त होता है । आदिम, मध्य और बाह्य-सूची प्राप्त करनेकी विधि लवणादणं रुदं, द-ति-चउ-गुणिदं कमा ति-लक्खाणे । प्रादिम-मझिम बाहिर-सईणं होदि परिमाणं ॥३४॥ लब १००००० । ३०००००। ५००००० ।। धाद ५००००० । ९००००० । १३००००० । कालो १३००००० । २१००००० । २९००००० । एवं देववर-समुद्दत्ति दट्ठन्वं । तस्सुवरिमहिंदवर'-दोवस्स बार रिण जोयणाणि २८१२५०२ । मज्झिम २४। रिण २७१८७५' । बाहिर ५३ । रिण २६२५०० ॥ अहिंदवर-समुदं । ५. रिण २६२५०० । मज्झिम । रिण २४३७५० । बाहिर । रिण २२५००० ।। सयंभूरमणदीव । रिण २२५००० । मज्झिम २६ । रिण १८७५०० । वाहिर रिण १५०००० ।। सयंभूरमणसमुद्द । रिण १५०००० । मज्झिम | रिग ७५००० । बाहिर ॥ अर्थ-लवणसमुद्रादिकके विस्तारको क्रमशः दो, तीन और चारसे गुणाकर प्राप्त लब्धराशिमेंसे तीन लाख कम करनेपर क्रमशः आदिम, मध्यम और बाह्य सूची का प्रमाण प्राप्त होता है ॥३४।। विशेषार्थ-लवरणसमुद्रादिमेंसे विवक्षित जिस द्वीप-समुद्रका अभ्यन्तर सूची-व्यास ज्ञात करना इष्ट हो उसके बलय-व्यासको दो से गुरिणत कर प्राप्त लब्धराशिमेंसे तीन लाख घटाने पर अभ्यन्तर सूची-न्यासका प्रमाण प्राप्त होता है । १.१.क. ज. तिस्सबरिपरिम। २. ई.८१२५० । ३.द.स. २२३४२७१८७४ |
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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