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तिलोयपणती
[ गाथा : ५५३
इय जम्मण-मरणाणं, उक्करसे होदि अंतर-पमाणं । सव्वेसु कप्पेसु, जहण्णए एक्क-समग्रो य ॥५५३॥
पाठान्तरम् । जम्मण-मरणाणंतर-कालो समत्तो ॥६॥ अर्थ-इस प्रकार सब कल्पों में जन्म-मरण का यह अन्तर प्रमारण उत्कृष्ट है । जघन्य अन्तर सब कल्पों में एक समय ही है ।।५५३॥
पाठान्तर ।
जन्म-मरणके अन्तरकाल का कथन समाप्त हुआ।
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