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________________ ५१८ ] [ गाथा : ३१५ - ३१९ ( १९५) और आनत प्राप्त - श्रारण- अच्युत अर्थ-इन्द्रके इन्द्रों के तिरेसठ ( ६३-६३ ) वल्लभा देवियां होती हैं ।। ३१४ || तिलोय पण्णत्ती परिवार - वल्लभाओ, सक्कानो दुगस्स जेटु-वेवोश्रो । यि सम' - विकुष्वणाम्रो पसेवकं सोलल सहस्सा ।। ३१५ ।। १६०००। अर्थ-सोधर्म और ईशान इन्द्रकी परिवार वल्लभात्रों और ज्येष्ठ देवियोंमें प्रत्येक अपने समान सोलह हजार ( १६००० ) प्रमारण विक्रिया करने में समर्थ है ।। ३१५|| - - तत्तो दुगुणं दुगुणं, ताओ पिय-तणु - विकुव्यजकराओ । आणद इंब - चउक्कं जाव कमेणं पचत्तध्वो ॥३१६॥ ३२००० | ६४००० । १२८००० | २५६००० | ५१२००० | १०२४००० । प्रथं - इसके आगे आनत भादि चार इन्द्रों पर्यन्त वे ज्येष्ठ देवियां क्रमश : इससे दूने प्रमाण अपने-अपने शरीरको विक्रिया करनेवाली हैं, ऐसा क्रमशः कहना चाहिए ||३१६ ॥ सब इन्द्रों की प्राणवरुलभाओं के नाम विनयसिरि- कणयमाला पउमा-णंदा सुसीम-जिरणदत्ता | gaar affiपये, एक्केक्का पाण- बहलहिया ॥३१७॥ - - एक-एक दक्षिणेन्द्र के विनयश्री कनकमाला, पद्मा, नन्दा, सुसीमा और जिनदत्ता, इसप्रकार एक-एक प्राणवल्लभा होती है ||३१७॥ एक्केrक उत्तरदे, एक्केक्का होवि हेममाला य । नीलुप्पल-विस्सुदा, गंदा वइलवखरणाश्रो जिणदासी ।।३१८ || अर्थ- हेममाला, नीलोत्पला विश्रुता, नन्दा, वैलक्षणा और जिनदासी, इसप्रकार एक-एक उत्तरेन्द्र के एक-एक प्राणवल्लभा होती है ।। ३१८ सर्यालय - बल्लभाणं, चत्तारि महसरीओ पत्तेक्कं । कामा कामिणिआओ, पंकयगंधा अलंबुसा लामा ||३१६ ॥ अर्थ--सब इन्द्रोंकी वल्लभाओं में से प्रत्येकके कामा, कामिनिका पंकजगन्धा और प्रलंबूषा नामक चार महत्तरी ( गणिका महत्तरी ) होती हैं ।। ३१६ ।। १. ब. समय ।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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