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________________ ४७४ ] तिलोयपणती [ गाथा : १३६-१३९ कप्पाणं सोमानो, णिय-णिय चरिमिंदयाण धय-वंडा । किचूणय • लोयंतो, कप्पातीदाण अवसारणं ॥१३६॥ एवं सीमा-परूवणा समत्ता ॥५॥ प्रपं-कल्पोंकी सोमाएं अपने-अपने अन्तिम इन्द्रकोंके ध्वज-दण्ड हैं और कुछ कम लोकका अन्त कल्पातीतोंका अन्त है ।।१३६।। उका होजाती पर: सप्त हुई ॥५॥ सौधर्म आदि कल्पोंके प्राश्रित श्रेणीबद्ध एवं प्रकीर्णक विमानोंका निर्देश उड-पहुवि-एक्कतीसं, एवेसु पुष्य-अवर-दक्षिणदो । सेढीबद्धा गइरदि-प्रगल-दिसा-ठिव - पहण्णा य ॥१३७॥ सोहम्मकप्प-णामा, तेसु उत्तर - विसाए सेढिगया। मरु - ईसारण - विस-दिव - पण्णया होंति ईसाणे ॥१३॥ अर्थ-ऋतु आदि इकतीस इन्द्रक एवं उनमें पूर्व, पश्चिम और दक्षिणके श्रेणीबद्ध; तया नैऋत्य एवं प्राग्नेय दिशामें स्थित प्रकीर्णक, इन्हींका नाम सोधर्मकल्प है। उपर्युक्त ( उन ) विमानों की उत्तर दिशामें स्थित श्रेणीबद्ध और वायव्य एवं ईशान दिशामें स्थित प्रकीर्णक, ये ईशान कल्पमें हैं ।।१३७-१३०॥ कल्प ... . Noo६० 1000530000 2009 कम मंजण-पहुवी सत्त य, एदेसि पुथ्व-प्रवर-वरिखणदो । सेढीबद्धा पइरदि - अणल'-विस - द्विव-पइण्णा य ॥१३॥ १, इ.स. . ज. उ. अणिल ।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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