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४३२ ] तिलोयपणाती
[ गाथा ! ६१८ रिण-रासिस्स पमाणे उच्च-एग-रूवमावि काबूण गच्छ पडि दुगुण-दुगुण-कमेण जाव सयंभूरमरणसमुद्दो त्ति गद-रिण-रासि होदि ।
अथं-पुनः गच्छोंके समीकरणके लिए सब गच्छों में एक-एक रूपका प्रक्षेप करना चाहिए । ऐसा करनेके पश्चात् मध्यमधनोंका चौंसठसे अपवर्तन करनेपर जो लब्ध प्राप्त हो उससे अपने-अपने गच्छोंको गुणा करके सब गच्छोंकी गुण्यमान राशिके रूपमें चौसठ रूपोंको रखना चाहिए। ऐसा करनेपर अब सर्व गन्छोंकी ऋण-राशिका प्रमाण कहता हूँ
एक रूपको आदि करके गच्छके प्रति (प्रत्येक गच्छमें ) दूने-दूने क्रमसे स्वयंभूरमणसमुद्र पर्यन्त ऋण राशि गई है।
विशेषार्थ- समीकरण-समीकरणका तात्पर्य है दो या दो से अधिक राशियों में सम्बन्ध दर्शानेवाला पद अथवा सूत्र
यहाँ गच्छोंके समीकरणके लिए सब गच्छोंमें एक-एक रूपका प्रक्षेप करना है । उसका अर्थ इसप्रकार है-पुष्करार्ध द्वीपके प्रथम वलयमें १४४ पन्द्र हैं और इससे दूने ( १४४४२) चन्द्र तृसीय समुद्रके प्रथम वलयमें, इससे दूने ( १४४ X २ ४ २) चन्द्र चतुर्थद्वीपके प्रथम वलयमें हैं।
विवक्षित द्वीप-समुद्र के प्रथम वलयको चन्द्र संख्या प्राप्त करनेके लिए विवक्षित द्वीपसमुद्रकी संख्याका मान 'क' मान लिया गया है अतः इसका सूत्र इसप्रकार होगा
विवक्षित द्वीप-समुद्रके प्रथम पलयकी चन्द्र संख्या १४४४२ (क-२) यथा-१० वा द्वीप विवक्षित है-क-१. १०वें द्वीपके प्रथम वलयमें चन्द्र संख्या= १४४४२ (१०-२)
१४४४२३ गच्छ, प्रचय एवं प्राविधन प्रादिके लक्षणगच्छ-श्रेणीके पदोंकी संख्याको अथवा जितने स्थानों में अधिक-अधिक होता जाय उन सब स्थानोंको पद या गच्छ कहते हैं । जैसे-तृतीय समुद्रकी गच्छ संख्या ३२ है।
प्रचय-श्रेणीके अनुगामी पदोंमें होनेवाली वृद्धि या हानिको अथवा प्रत्येक स्थानमें जितना-जितना अधिक होता है उस अधिकके प्रमाणको प्रचय कहते हैं । जैसे-तृतीय समुद्र के प्रत्येक वलयमें ४-४ की वृद्धि हुई है।