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[७] तिलोयपण्णत्ती ग्रन्थ राज का प्रथम प्रकाशन 'जीवराज ग्रन्थमाला' सोलापुर से हुआ था। ग्रन्थमाला के इस उपकार को दृष्टि में रखते हुए वहाँ तीनों खण्डों की ५०-५० प्रतियां भेंट स्वरूप भेजी गई हैं।
___ इसके अतिरिक्त और भी महानुभावों ने नन्थ के प्रकाशनार्थ जो वित्तीय सहयोग दिया है, उस सबका विवरण दूसरे खण्ड में दे दिया था, उसके बाद जो सहयोग प्राप्त हुपा है वह इसप्रकार
११०११) श्रीमती गुलाबबाई मातेश्वरी श्री महावीरजी मजितकुमारजी मोंडा,
उदयपुर ( राज०) ७६.३) श्री दि० जैन समाज करण, उदयपुर (राज.)
हस्ते ४१०१) सौ. शांतिबाई ध० प० श्री नीरजजी जैन, सतना (म.प्र.) ॥ २५७५) सौं० प्रमिलादेवी ध०प० श्री शाह पूनमचन्दजी भावनगर (म.प्र.) ।। १३०१) सो० सत्यभामा ध० १० श्री सज्जनकुमारजी हंगावत,
उदयपुर ( राज.) ७००१) श्रीमान् संतोषलालजी मेहता, उदयपुर (राज.) आपने ति० प० ग्रन्थ के
तृतीय खण्ड की ५० प्रतिया थी 'जीवराज ग्रन्थमाला' सोलापुर को भेंट स्वरूप
प्रदान की हैं। ६०००) धी दिगम्बर जैन चैत्यालय, कूच बिहार ( वेस्ट बंगाल )
हस्ते-श्री गणेशमलजी पौडमा ( सरावगी)। ५५११) श्री दि. जैन समाज, सलम्बर (राज. )
हस्ते श्री केबलदासजी धनजी भाई, भावनगर ( गुजरात) ३००१) श्री मगनीलालजी पन्नालालजी भोरावत, चेरीटेबल ट्रस्ट, उदयपुर 1 २५००) श्री मदनलालजी चांदवाड़, रामगंज-मंडी ( राज. ) २५००) श्री नाथूलालजी भानजा, निवाई { राज०) २०००) श्री नेमीचन्दजी गंगवाल, निवाई (राज.) १००१) श्री हरिनारायणजी जैन, निवाई ( राज.) १०००) श्री कस्तूरचन्दजी नागदा, उदयपुर ( राज०) उपर्युक्त सभी दातारों को बहुत-बहुत धन्यवाद ।
पूज्य माताजी स्वस्थ और दीर्घजीवी रहकर जिनवाणी माता की सेवा में संलग्न रहें ताकि मुझे भी सरस्वती माता की सेवा का सुअवसर प्राप्त होता रहे ; यही मेरी हार्दिक भावना है।
विनीत : मा० कजोड़ीमल कामदार (संघस्थ)