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________________ २९२ । तिलोयपात्ती [ गाथा : २०१-२०५ राहु विमानका वर्णन - ससहर-णयर-तलावो, चत्तारि पमाण-अंगुलाणं पि । हेद्वा गच्छिय होंति हुँ, राहु विमाणस्स धयदंडा ॥२०॥ अर्थ-चन्द्र के नगरतलसे चार प्रमाणांगुल नीचे जाकर राहु-विमानके ध्वज-दण्ड होते हैं ।।२०१।। विशेषार्थ--एक प्रमारगांगुल ५०० उत्सेधांगुलों के बराबर होता है । (ति० १० प्रथम प्र० गाथा १०७-१०८ के ) इस नियमके अनुसार ४ प्रमाणांगुलोंके धनुष आदि बनाने पर ( AP) २० धनुष, ३ हाथ और ८ अंगुल प्राप्त होते हैं । चन्द्र-विमान तलसे राहु विमान का ध्वज दण्ड २० धनुष, ३ हाथ और ८ अंगुल नीचे है । ते राहुस्स विमाणा, अंजणवण्णा अरिद-रयणमया । किचूणं जोयणयं, विक्खंभ - जुदा तदव • बहलत्तं ॥२०२॥ अर्थ-अरिष्ट रत्नोंसे निर्मित अंजनवर्णवाले राहुके वे विमान कुछ कम एक योजन प्रमाण विस्तारसे संयुक्त और बिस्तारसे अर्घ बाहल्यवाले हैं ।।२०२॥ पण्णासाहिप-दु-सया, कोदंडा राहु-एयर-बाहलत्त । एवं लोय - विणिच्छय • कत्तायरियो परवति ॥२०३॥ पाठान्तरं। अर्थ-राहु-नगरका बाहल्य दो सौ पचास धनुष-प्रमाण है; ऐसा लोकविनिश्चय-कर्ता आचार्य प्ररूपण करते हैं ।।२०३।। पाठान्तर। चउ-गोउर-जुत्तेसु य, जिनमंदिर-मंडिदेसु णयरेसु। तेसुबहु • परिवारा, राहू गामेण होंति सुरा ॥२०४॥ प्रर्य-चार गोपुरोंसे संयुक्त और जिनमन्दिरोंसे मुशोभित उन नगरोंमें बहुत परिवार सहित राह नामक देव होते हैं ।।२०४॥ । राहुओंके भेदराहूण पुर-तलाणं, दु-वियप्पारित हवंति गमणाणि । दिरण-पन्व-वियप्पेहि, दिणराहू ससि-सरिच्छ-गई ॥२०५।। अपं-दिन और पर्व के भेदसे राहुओंके पुरतलोंके गमन दो प्रकार होते हैं । इनमेंसे दिनराहुकी गति चन्द्र के सदृश होती है ।।२०५॥
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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