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तिलोयपात्ती
[ गाथा : २०१-२०५ राहु विमानका वर्णन - ससहर-णयर-तलावो, चत्तारि पमाण-अंगुलाणं पि ।
हेद्वा गच्छिय होंति हुँ, राहु विमाणस्स धयदंडा ॥२०॥
अर्थ-चन्द्र के नगरतलसे चार प्रमाणांगुल नीचे जाकर राहु-विमानके ध्वज-दण्ड होते हैं ।।२०१।।
विशेषार्थ--एक प्रमारगांगुल ५०० उत्सेधांगुलों के बराबर होता है । (ति० १० प्रथम प्र० गाथा १०७-१०८ के ) इस नियमके अनुसार ४ प्रमाणांगुलोंके धनुष आदि बनाने पर ( AP) २० धनुष, ३ हाथ और ८ अंगुल प्राप्त होते हैं । चन्द्र-विमान तलसे राहु विमान का ध्वज दण्ड २० धनुष, ३ हाथ और ८ अंगुल नीचे है ।
ते राहुस्स विमाणा, अंजणवण्णा अरिद-रयणमया ।
किचूणं जोयणयं, विक्खंभ - जुदा तदव • बहलत्तं ॥२०२॥
अर्थ-अरिष्ट रत्नोंसे निर्मित अंजनवर्णवाले राहुके वे विमान कुछ कम एक योजन प्रमाण विस्तारसे संयुक्त और बिस्तारसे अर्घ बाहल्यवाले हैं ।।२०२॥
पण्णासाहिप-दु-सया, कोदंडा राहु-एयर-बाहलत्त । एवं लोय - विणिच्छय • कत्तायरियो परवति ॥२०३॥
पाठान्तरं। अर्थ-राहु-नगरका बाहल्य दो सौ पचास धनुष-प्रमाण है; ऐसा लोकविनिश्चय-कर्ता आचार्य प्ररूपण करते हैं ।।२०३।।
पाठान्तर।
चउ-गोउर-जुत्तेसु य, जिनमंदिर-मंडिदेसु णयरेसु।
तेसुबहु • परिवारा, राहू गामेण होंति सुरा ॥२०४॥ प्रर्य-चार गोपुरोंसे संयुक्त और जिनमन्दिरोंसे मुशोभित उन नगरोंमें बहुत परिवार सहित राह नामक देव होते हैं ।।२०४॥ ।
राहुओंके भेदराहूण पुर-तलाणं, दु-वियप्पारित हवंति गमणाणि ।
दिरण-पन्व-वियप्पेहि, दिणराहू ससि-सरिच्छ-गई ॥२०५।।
अपं-दिन और पर्व के भेदसे राहुओंके पुरतलोंके गमन दो प्रकार होते हैं । इनमेंसे दिनराहुकी गति चन्द्र के सदृश होती है ।।२०५॥