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________________ गाथा : २७१ ] पंचमी महाहियारो [ ११३ मानलो - क्षीरवरसमुद्र इष्ट है। इसका विस्तार ५१२००००० यो० और खण्डशलाकाएं ३१३९५६४ हैं । अधिक हैं । ३१३९५८४ – ( १९५०७२ x १६ खं० श० ) = १८४३२ खं० श० वारुणी समुद्र से ३१३९५८४=(१९५०७२४१६ बं० श० ) + १८४३२४३ (५०००० ) 2 ] = ( १९५०७२ ×१६ खं० श० ) + १३८२२४०००००००००० वर्ग यो० है । क्षीरवर समुद्रका यह १३८२२४४ (१०) १० वर्ग योजन प्रक्षेप वारुणीवर समुद्र के ३४५६४ (१०) १* वर्ग योजनसे ४ गुना है । तत्थ विवखभायाम खेत्तफलागं अंतिम वियप्पं बस इस्सामो अर्थ - उनमें विस्तार, आयाम और क्षेत्रफलके अन्तिम विकल्पको कहते हैंअहीन्द्रवर समुद्रका विस्तार और आयाम १३ अहिंदवरसमुद्दस्स विक्खंभं रज्जूए सोलस-भागं पुरणो अट्ठारस- सहस्स सससयपणास जोयणेहि अम्भहियं होदि । तस्स ठषणा ७ । २. धण जोयपाणि १८७५० । तस्स श्रायाम णव रज्जू ठविय सोलस-रूवेहि भजिदमेतं पुणो सप्त-लक्खएक्कलीस-सहस्स वेण्णि-सय-पण्णास जोयणेहि परिहीणं होदि । तस्स ठवरणा-७ रिण जोयणाणि ७३१२५० ।। अर्थ - अहीन्द्रवर समुद्रका विस्तार राजूका सोलहवाँ भाग और अठारह हजार सात सौ पचास योजन अधिक है। उसकी स्थापना इसप्रकार है: - राजू +१८७५० यो० । 1 इस समुद्रका आयाम नौ राजुओोंको रखकर सोलहका भाग देनेपर जो लब्ध प्राप्त हो उसमें से सात लाख इकतीस हजार दो सौ पचास योजन हीन है। उसकी स्थापना - १६ राजू योजन || ७३१२५० विशेषार्थ - अहोन्द्र व रसमुद्रका विस्तार - राजू X १६ + १८७५० योजन है । इसी समुद्रका आयाम = ( राज + १८७५० - १००००० } xx "" ९, राजू - ( ८१२५० x ९ ) = ९ राजू – ७३१२५० योजन । -
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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