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________________ ९८ ] तिलोयफ्पाती पिा : २६७ विशेषार्थ :--गाथानुसार सूत्र इसप्रकार है निज खण्डशलाकाएँ वरिणत अतिरेक= निज विस्तार २००००० उबाहरण-मानलो-यहां क्षीरवर द्वीप इष्ट है । जिसका विस्तार २५६००००० योजन है और खण्डशलाकाएँ ७८३३६० हैं। वशित अतिरेक-२५६००००० २००००० ७८३३६०६१२० । १२८ बारहवां-पक्ष Mon--- . . जम्बूद्वीपको छोड़कर समुद्रसे द्वीप और द्वीपसे समुद्रका विष्कम्भ दुगुना एवं आयाम दुगुनेसे १ लाख योजन अधिक हैबारसम-पक्खे अप्पबहुलं वसइस्सामो । तं जहा-जाव जंबद्वीयमवणिज्ज लवणसमुहस्स विक्खंभे वेषिण-लक्खं पायामं रणव-लक्खं, पादईसंड-दीवस्स विखंभं चत्तारिलक्खं आयामं सत्तावीस-लक्वं, कालोदगसमुहस्स विक्खंभं अट्ठ-लक्वं प्रायाम तेसदिठलक्खं, एवं समुद्दादो वीवस्स दीवादी समुदस्स विक्खंभावो विक्खंभं गुणं आयामावो आयामं दुगुणं णव-लक्खेहि प्रभहियं होऊण गच्छद जाव सयंभूरमणसमुद्दो ति ।। अर्थ--बारहवें पक्षमें अल्पबहुत्व कहते हैं। वह इसप्रकार है-जम्बूद्वीपको छोड़कर लवणसमुद्र का विस्तार दो लाख यो और आयाम नौ लाख योजन है । धातकीखण्डका विस्तार चार लाख यो० और आयाम सत्ताईस लाख योजन है । कालोदसमुद्र का विस्तार आठ लाख यो० और आयाम तिरेसठ लाख योजन है । इसप्रकार समुद्रसे द्वीपका और द्वीपसे समुद्रका विस्तार दुगुना तथा आयामसे पायाम दुगुना और नौ लाख अधिक होकर स्वयम्भूरमण समुद्र पर्यन्त चला गया है। विशेषार्थ---जम्बूद्वीपको छोड़कर लवणसमुद्रका विस्तार २ लाख योजन है और आयाम ९००००० योजन है।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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