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पारा : २३०-२२३ ]
वउत्थो महाहियारो मणि-तोरण-रमषिज, वर-वय-कबाउ-शुगल-सोहिल्लं ।
गाणाविह - रयणपहा - निचुन्जोयं विरागवे वारं ॥२०॥ liter: . पू शुक्ल : रिमालोरयों के सहय, उत्तम बलमय दो कपाटोंसे शोभायमान और भनेक प्रकारके रत्नोंको प्रभासे नित्य प्रकाशमान होता हुआ सुशोभित है ।।२३०।।
पर-दि-परिक्ति, घउ-गोउर 'मंस्तिम्मि पासावे ।
रम्मुजाणे' सस्सि', गंगादेवी सयं बसइ ।।२३१॥
मर्थ : - उत्तम वदोसे चेगित, बार गोपुरोंते मुशोभित तथा रमणीय उद्यानसे युक्त उस भवनमें स्वयं गंङ्गादेवी रहती है ।।२३।।
गंगाकुट पर स्थित जिनेन्द्र प्रनिमाका स्वरूपभषणोपरि कास्मि य, निजिर-पडिमानो' सासव-ठिवीभो ।
पेटुति किरण - मंबल - उन्नोहर - सयस - आसाओ' ।।२३२।।
प्रब:--उस भवनके ऊपर कूटएर किरण-समूहसे सम्पूर्ण दिशाओंको प्रकाशित करनेवाली और शाश्वत स्थितिवाली अर्थात् मत्रिम जिनेन्द्र प्रतिमाएं स्पित हैं ।।२३२।।
आवि-विणपरिमाओं, तामो जाडा-मउहरिल्लाओं'।
परिमोवरिम्भि गंगा, 'अभिसित - मणा व सा पडरि ॥२३३॥
प:-आदि जिनेन्दको थे प्रतिमाएं जटा-मुकुटरूप मेखर सहित हैं। इन प्रतिमानोपर वह गंगानदी मानो मनमें अभिषेकको भावना रखती हुई (ही) गिरतो है ।।२३३।।
[रित्र अगले पृम पर देखिये ]
१.. मंदरमि। २. 5. व. म. . रम्मुण्ाणं। ३. स. ज. य. त. ताम। ४. प.प.क. त. परिमाधि। ..द.क.प.रिडीची, .. ३. सोन। .. . बसमो, का.म.उ. दिसमो। प.प. तोपोग्ब मस पासेह रिल्लायो । 4.क.प. प. उ. पोउम्बा मटर पामेड रिमानो। ६.प.क.ब.प. पमिसित्तुमरापमा, र प्रभिसामापसः ।