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गाथा : २८५० - २६४२
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महाहियारो
[ ७६३
पर्व :- भरतादिक क्षेत्रोंके बाह्य विस्तार मेंसे प्रादिम विस्तार घटाकर जो शेष रहे उसमें आठ लाखका भाग वेनेपर इस्थित स्थान में अय-वृद्धिका प्रमाण प्राप्त होता है ।।२८४६ ।। 80X12 पो०
(६५४४६str ४१५७९२३ - ६०००००
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हानि - वृद्धिका
प्रमाण ।
भरतादि सातों क्षेत्रों
तथा
एक्कसाल सहस्सा, पंच-सथा जोमणाणि उपसीवी । तेहतरि उत्तर सद- कलाओ अभ्यंतरे भरह- रुवं ।। २६५० ।।
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४१५७६ । ३ ।
:- भरतक्षेत्रका अभ्यन्तर विस्तार इकतालीस हजार पांचसौ उन्यासी योजन और एकसो तितर भाग अधिक (४१५७९३१ योजन प्रमाण ) है ॥२८५०।।
भरहुस्स मूल हवं च गुनिये होदि 'हेमवबए । अन्तरम् दवं तं हरिवरिसस्स चउ गुणियं ।। २८५१ ।।
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१६६३१९ ।। ६६५२७७
:- भरतक्षेत्रके मूल विस्तारको चारसे गुणा करनेपर हैमवतक्षेत्रका अभ्यन्तर विस्तार
और इसको भी बारसे गुणा करनेपर हरिवर्षका अभ्यन्तर विस्तार प्राप्त होता है ।।२६५१ ॥
१६६३१६६६ यो० हैमवतका और ६६५२७७१ यो० हरिक्षेत्रका विस्तार है।
हरि घरिलो चउ-गुनियो, ददो प्रभंतरे विदेहस्स । पतंबकं चउगुणा हाणी ।। २६४२ ।। २६६११०८ । ६ । ६६४२७७ । २ । १६६३१६ ३ | ४१५७६३३
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वरिलाम
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:- हरिवर्ष क्षेत्रके विस्तारको चारसे गुणा करनेपर विदेहका अभ्यन्तर विस्तार ( २६६११००६ यो० ) ज्ञात होता है । फिर इसके आगे शेष क्षेत्रोंके विस्तार में कमम: चौगुनी हामि होती गई है ।। २६५२ ।।
६६२७७३१३ यो० रम्यक का, १६६३१९३१ यो हैरभ्यवतका तथा ४१५७६३२३ मो० ऐरावत क्षेत्रका विस्तार है ।
१. द. व. उ. व भूयै ।