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________________ ७४४ ] सिलो पणती अभंतरस्म्मि दोबा, पसारि 'विसासु तह य विदितासु । अंतरवसा अट्टू य, अट्ठ य गिरि परिधि भागेषु ।।२७६५ ॥ - - [ गाथा : २७६५-२७६८ ४ | ४ | ६ | ६ अर्थ :- उसके अभ्यन्तरभागमें दिशाओं में चार, विदिशाओं में चार अन्तरदिशानों में भाठ और पर्वतों पावं मागों में भी मठ ही द्वीप हैं ।। २७६५ ।। तटोंसे दोषोंकी दूरी एवं उनका विस्तारsufoche: are at · जोयल-पंच-समाण, पन्नम्भहियारिग दो सडाहिती | - पविसिय विसासू बीना पत्तेक्कं तु सय विश्वंभो ॥२७६६ ॥ ५५० । २०० । अर्थ :- इन मेंसे दिशाओं के द्वीप दोनों तटोंसे पचिसो पचास (५५० ) योजन प्रमाण समुद्रमें प्रवेश करके स्थित हैं। इनमें से प्रत्येक द्वीपका विस्तार दोसी ( २०० ) योजन प्रमाण है ।।२७६६।। जोयणम इस्सयाग, कालोबजलम्बि वो - तो। पविसिय विदिसा दीवा, परोवई एक्क सय ।।२७६७॥ · ६०० । १०० । अयं :-- दोनों तटोंसे हो ( ६०० ) योजन प्रमाण कालोदधि समुद्र में प्रवेश करनेपर विदिशामों में द्वीप स्थित है। इनमें से प्रत्येक द्वीपका विस्तार एकसो (१००) योजन प्रमाण १२७६७१ जयन पंचसयाई, पण्चहियाणि मेाहिती | पथिसिय अंतर - दीवा, पन्चादाय पक्कं ।। २७६८ । ५५० | ५० । -दोनों तटोंसे पचिसो पचास (५५० ) योजन प्रवेश करके अन्तरद्वीप स्थित हैं। इनमें से प्रत्येकका विस्तार पचास (५० ) योजन प्रमाण है ।।२७६८।० १. ब. व विदिसामु । २.८. . . संदी
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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