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सिलो पणती
अभंतरस्म्मि दोबा, पसारि 'विसासु तह य विदितासु । अंतरवसा अट्टू य, अट्ठ य गिरि परिधि भागेषु ।।२७६५ ॥
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[ गाथा : २७६५-२७६८
४ | ४ | ६ | ६
अर्थ :- उसके अभ्यन्तरभागमें दिशाओं में चार, विदिशाओं में चार अन्तरदिशानों में भाठ और पर्वतों पावं मागों में भी मठ ही द्वीप हैं ।। २७६५ ।।
तटोंसे दोषोंकी दूरी एवं उनका विस्तारsufoche: are at
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जोयल-पंच-समाण, पन्नम्भहियारिग दो सडाहिती |
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पविसिय विसासू बीना पत्तेक्कं तु सय विश्वंभो ॥२७६६ ॥
५५० । २०० ।
अर्थ :- इन मेंसे दिशाओं के द्वीप दोनों तटोंसे पचिसो पचास (५५० ) योजन प्रमाण समुद्रमें प्रवेश करके स्थित हैं। इनमें से प्रत्येक द्वीपका विस्तार दोसी ( २०० ) योजन प्रमाण है ।।२७६६।।
जोयणम इस्सयाग, कालोबजलम्बि वो
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तो। पविसिय विदिसा दीवा, परोवई एक्क सय ।।२७६७॥
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६०० । १०० ।
अयं :-- दोनों तटोंसे हो ( ६०० ) योजन प्रमाण कालोदधि समुद्र में प्रवेश करनेपर विदिशामों में द्वीप स्थित है। इनमें से प्रत्येक द्वीपका विस्तार एकसो (१००) योजन प्रमाण
१२७६७१
जयन पंचसयाई, पण्चहियाणि मेाहिती | पथिसिय अंतर - दीवा, पन्चादाय पक्कं ।। २७६८ ।
५५० | ५० ।
-दोनों तटोंसे पचिसो पचास (५५० ) योजन प्रवेश करके अन्तरद्वीप स्थित हैं। इनमें से प्रत्येकका विस्तार पचास (५० ) योजन प्रमाण है ।।२७६८।०
१. ब. व विदिसामु । २.८. . . संदी