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गाया । २५५४-२५५६ ]
चत्वो महाद्दियारो
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- वे सब कुमानुष दो हजार (२०००) धनुष ऊंचे होते हैं, मन्दकषायी, प्रियंगु सहपा श्यामल और एक पस्यप्रमाण आयुसे युक्त होकर कुभोगभूमिमें स्थित रहते हैं ।। २५५३ ।।
तम्भूमि जोग- भोगं, भोरणं आउसास प्रवसा । कासवसं संपत्ता, जायंते भवन तिक्यम्मि ।। २५५४ ॥
:- उस भूमिके योग्य भोगोंको भोगकर वे आयुके अन्तमें मरणको प्राप्त हो भवनत्रिदेवोंमें उत्पन्न होते हैं ।। २५५४ ।।
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सम्म सखरपणे आहि हिरवा विहेषु, सोहम्मदुर्गामि जायते ।। २५५५ ।।
बीवेसु च
अयं :--इन चार ( प्रकारके ) द्वीपोंमें जिन मनुष्यों एवं तियंत्रोंने सम्यग्दर्शनरूप रत्न ग्रहण कर लिया है वे सोघमंयुगल में उत्पन्न होते हैं ।। २५५५ ।।
सवरणसमुद्रस्य मत्स्यादिकों को अवगाहना
अ. य. उ. प्रो
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णव ओयण सोहता, तवद्ध वासा तवज्रा ।
तेसु गई मुह मच्छा पक्कं होंति पउपरा' ।। २५५६ ।।
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ε।।।।
अर्थ :-- लवण समुद्र में नदी-मुखके समीप रहनेवाले मत्स्योंमें प्रत्येककी लम्बाई नो ( ६ ) योजन, विस्तार साढ़े चार ( ४३ ) योजन और मोटाई सवा दो ( २३ ) योजन प्रमाण है ।। २५५६ ।।
लवनोवहि-बहू- मन्छे, मच्छानं वीह वास-बलाणि ।
सरि मुह मच्छाहितो, हर्बति गुणप्पमानामि ।। २५५७ ।।
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अयं :- लवणसमुद्रके बहु-मध्य भागमें मस्स्योंकी लम्बाई, विस्तार और बाल्य नदीमुख-मरस्योंकी प्रपेक्षा दुगुने प्रमाणसे संयुक्त है । श्रर्थात् लम्बाई १८ योजन, विस्तार ६ योजन और मोटाई ४ योजन प्रमाण है ।। २५५७।।
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सेसेषु ठाणे बहु विह-जग्गा जन्मिदा मच्छा । मयर सिसुमार कब मंडूक पहुविरोध
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॥२५५८ ॥
१. य. ब. क. प. प. उ. परत | २. ब. ग्म । १.... वय उ. मगरमं । ४.ब. क.