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________________ ६०० Jorts आचार्य श्री 'तिमीमात कच्छादि क्षेत्रोंका विस्तार- योनि सहस्सा बु-सया, बारसन्तास पुष्वावरेन से एमकेश्के होवि २२१२।१। प :- प्रत्येक क्षेत्रका पूर्वापर पूर्व से पश्चिम तकका ) विस्तार दो हजार दोसौ बारह योजन और पाठ भाजित सात अंश ( २२१२६ योजन ) प्रमाण है ।।२२४३ ॥ वक्षार पवंत और विभंगा नदियोंका विस्तार - · पंच-सय-जोगागि, पुह पुत्र वक्वार-मेल- विश्वंभो । दिय जिय कुष्पत्ती, ठाणे कोलागि पन्जासा ।। २२४४। ५०० । को ५० । · · [ गाषा : २२४३-२२४९ वासो विभंग - कल्लोलिनीन' सव्वान होनि पक्कं । सोवा सीगोद नई पवेस बेसम्मि पंच-सय- कोसा ।।२२४५॥ · ५०० । पर्थ :- वक्षारशंलोंका पृथक-पृथक विस्तार पाँचसी ( ५०० ) योजन बोर सब विरंगनदियोसे प्रत्येकका विस्तार अपने-अपने कुण्डके पास उत्पत्तिस्थानमें पचास (५०) कोस तथा सीता-सोसोदा नदियों के पास प्रदेश स्थानमें पचिस ( ५०० ) कोस प्रमाण है ।।२२४४-२२४५ ॥ वनका विस्ताद - झट्ट हिवा विजयम्मि ।। २२४३ ॥ - ( २६२२ ) योजन प्रमाण है ।।२२४६ ।। पुण्याबरेम मोच, उतीस सयामि तह य बाबीसं । दो बारणे, मूवारणे २१२२ । म :- देवारथ्य और तारण्यमेंसे प्रत्येकका पूर्वापर विस्तार दो हजार नौ श्री बाईस 口 शेषर्क ॥ २२४६॥ १.प.अ.ज. उ. एमकेको २. द. तो लिमी ब. क.प.उ. तो एवी
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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