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________________ ५६२ ] तिलोत्त बतारि सहस्साई तिष्णि सपा कोयरणाणि पञ्चरता 1 तेतीसहिय सएनं भाजिद वासोवि कला ॥२०६५।। | ४३१५ | - पर्थ नारा बयासी कला ( ४३१५१ योजन ) प्रमाए है ।२०६५।। - आदिम कूडोवरिमे, जिल-भवणं तस्स वास-उच्छे हो । बोहंच ओपंग वण जिगपुर सरिछ । २०६६।। · अर्थ:- प्रथम कूट के ऊपर एक जिन-भवन है। उसके विस्तार, ऊँचाई पर लम्बाई बादिका वर्णन पाण्डुकबन-सम्बन्धी जिनपुर के सदृश है ।।२०६६ ।। - - सेहेसु कूशंसु, बेंतर देवान होंति पासादा । - वेदो-तोर जुत्ता, कणयमया रयण वर - खच्चिदा ॥२०६७॥ अर्थ:-शेष टोंपर वेदी एवं तोरण सहित एवं उत्तम रश्नोंसे खचित ऐसे व्यन्तर देवों स्वर्णमय प्रासाद है || २०६७।। - [ गाथा २०६५- २०७० कंण कूडे शिवस, सुबन्छ देवि सिरिवच्छ मितवेवी, कूडवरे मान पर एक पस्यप्रमाण पायुसे युक्त सुवत्सादेवी ( सुमित्रा देवी ) पोर विमल नामक श्रेष्ठ कूटपर बीवरसमित्रा देवो निवास करती है ।।२०६६ ॥ 1 तंत्रास माजित सि एक्क- पहलाऊ । विमल सामम्मि ॥२०६८६ ॥ - श्रवसेसे चउस कूडे वाप चतरा देवा' । गिय-कूद सरिस लामा, विवि विनोदेहि कोयंति ।।२०६१।। - - :- शेष चार कूटों पर अपने-अपने कूट सा नामदाले भ्यन्तरदेव विविध प्रकारके विनोद पूर्वक कोड़ा करते हैं ।।२०६६ ।। विद्यप्रभगजदन्नों के कूटोंका वर्जन विपस्स उर्वार, राव कूडा होति दिवमायारा सिद्धो बिज्जुपक्यो, देवकुरू-पक्ष्म-सवन-सरिपकया ।।२०७०।। ख. क. उ. देशी म. देवे । २.६ ब देवो । -
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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