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तिलोत्त
बतारि सहस्साई तिष्णि सपा कोयरणाणि पञ्चरता 1 तेतीसहिय सएनं भाजिद वासोवि कला ॥२०६५।।
| ४३१५ |
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पर्थ
नारा
बयासी कला ( ४३१५१ योजन ) प्रमाए है ।२०६५।।
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आदिम कूडोवरिमे, जिल-भवणं तस्स वास-उच्छे हो ।
बोहंच ओपंग वण जिगपुर सरिछ । २०६६।।
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अर्थ:- प्रथम कूट के ऊपर एक जिन-भवन है। उसके विस्तार, ऊँचाई पर लम्बाई बादिका वर्णन पाण्डुकबन-सम्बन्धी जिनपुर के सदृश है ।।२०६६ ।।
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सेहेसु कूशंसु, बेंतर देवान होंति पासादा ।
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वेदो-तोर जुत्ता, कणयमया रयण वर - खच्चिदा ॥२०६७॥ अर्थ:-शेष टोंपर वेदी एवं तोरण सहित एवं उत्तम रश्नोंसे खचित ऐसे व्यन्तर देवों स्वर्णमय प्रासाद है || २०६७।।
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[ गाथा २०६५- २०७०
कंण कूडे शिवस, सुबन्छ देवि सिरिवच्छ मितवेवी, कूडवरे मान पर एक पस्यप्रमाण पायुसे युक्त सुवत्सादेवी ( सुमित्रा देवी ) पोर विमल नामक श्रेष्ठ कूटपर बीवरसमित्रा देवो निवास करती है ।।२०६६ ॥
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तंत्रास माजित
सि एक्क- पहलाऊ ।
विमल सामम्मि ॥२०६८६ ॥
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श्रवसेसे चउस कूडे वाप चतरा देवा' । गिय-कूद सरिस लामा, विवि विनोदेहि कोयंति ।।२०६१।।
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:- शेष चार कूटों पर अपने-अपने कूट सा नामदाले भ्यन्तरदेव विविध प्रकारके विनोद पूर्वक कोड़ा करते हैं ।।२०६६ ।।
विद्यप्रभगजदन्नों के कूटोंका वर्जन
विपस्स उर्वार, राव कूडा होति दिवमायारा
सिद्धो बिज्जुपक्यो, देवकुरू-पक्ष्म-सवन-सरिपकया ।।२०७०।।
ख. क. उ. देशी म. देवे । २.६ ब देवो ।
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