SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 559
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तिलोपपण्णत्ती [ गाय १६२१-१६२५ म :- सभापुर में उत्तम रत्नोंसे निर्मित परम रमणीय सिहासन, भद्रासन भोर नेत्रासन आदि नाना प्रकारके पीठ हैं ।। १६२० ।। ३२ ] पाकशाने श्री अनिल क होति सभापुर पुरवो, पोटो जालोस-कोस-उच्छहो लानाहि रयणमनो, उच्छन्नो तस्स बास बसी ।।१६२१।। - · । ४० को । अर्थ :- सभापुर के भागे नाना प्रकार के रत्नोंसे निर्मित घालीस (४०) कोस ऊँचा एक पोट है। इसके विस्तारका उपदेश नष्ट हो गया है ।। ११२१ ।। पोस्स उ दिसासु बारस वेदोभो होंति मिले। w वर - गोउराम्रो सेवियमेताओ पी 1 उम्मि १११६२२॥ अर्थ :- पीठके चारों ओर उत्तम गोपुरोंसे युक्त बारह वैदियाँ पृथिवीतलपर बोर इतनी हौ ( वेदियाँ } पीठके ऊपर है ।। १६२२ ।। स्तूपों का वर्णन पोडोर बहुए, समबद्धो घेटुवे रथन furere. कमसी कोसाणि - | को ६४ । ६४ । अर्थ :- पीठके ऊपर बहुमध्य भागमें एक समवृत्त रश्नस्तूप स्थित है, जो क्रमशः पाँसठ ( ६४ ) कोस विस्तृत और गोसठ (६४) कोस ही ऊंचा है ।। १६२३ ।। M चूहो । उसट्ठी ।। १६२३।। छता-सावि-सहियो कनवभयो पजवंत-मनि-किरणो । चूहो अगाध लिहणारे, जिल-सिद्ध-पश्मि-परिपुणो ।। १६२४ ।। अर्थ :- छत्रके ऊपर छत्र संयुक्त, देदीप्यमान मरिण किरणोंसे विभूषित और जिन ( अरिहन्त ) एवं सिद्ध प्रतिमाओं से परिपूर्ण अनादिनिधन स्वर्णमय स्तूप है ।। १६२४ ।। तस्य पुरवो पुरवो अब चूहा तस्सरिन्छ बासावी तानं प्रमे दिव्यं पीठं श्रेष्ठ वि कणवमयं ।। १६२५।। - अर्थ :- इसके आगे-आगे सदृश विस्तारादि सहित आठ स्तूप हैं। इन स्तूपोंके आगे स्वर्णमय दिव्य आठ पोठ स्थित हैं ।। ११२५ ॥ 1. K. 7, zug), 4. a, a, gýt i
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy