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________________ २०] पिण्यास सत सहस्ताणि धणू, पंच-सर्यााणि च होति बत्तीसं । तिष्णि-विय 'पब्वाणि, तिम्णि जबा किंचिदविरिता ॥६६॥ ७५३२ । ३ । जो ३ अर्थ :- जगन के बाह्य भागमें द्वारोंके अन्तरालका प्रमाण उन्यासी हजार बावन बत्तीस ( ७५३२ ) (७६०५२) योजनले म है । ( इस प्र सेफ धनुष, तीन अंगुल और कुछ अधिक तीन जो है ।।६८-६९ ।। [ गाथा : ६९-७० विशेषार्थ : - ( गाथा ५१ से ५६ पर्यंन्त ) जम्बूद्वीपको परिधि ३१६२२७ योजन, ३ कोस, १२८ धनुष आदि कही गई है। इसमेंसे १६ योजन [ जगती में चार द्वार हैं और प्रत्येक द्वार चार योजन घोड़ा है ( गा० ४४ ), अतः १६ ० ] घटाकर चारका भाग देने पर जगतीके वाह्य भाग में द्वारोंके अन्तरालका प्रमाण प्राप्त होता है । यथा - १११ = ७९०५२ योजन, ३ योजन अवशेष ३ यो० x ( ४ को ० ) + ३ = ३ कोस, अवशेष ३ कोस । ( ३x२००० ४० L Y ४ १५३२ धनुष पाय, ३ अंगुल, o वितस्ति, अर्थात् ३ कोस १५३२ धनुष या ७५३२ धनुष, ० रिक्कू हाय ३, २ जू २ लीक, ३ कर्मभूमिके चाल, ४ ज० म० के बाल, १ म० भ० का जाल, ७ उ० भ० के बाल, २ रेणु, २ ० ६ टरेणु, सन्नासन्न एवं ४३ अवसभासन ब्यादि द्वारोंके अन्तरालमें अधिकका प्रमाण है । 6 ६०) + १२८ १. द. पंचा ४. य. गिस्य । जगतीके अभ्यन्तरभाग में जम्बूद्वीपको परिधि जगवी - अभंतरए, परिही लक्खाणि तिष्णि जोयगया । सोल ससस्स - मि-सय-बाणा होंति किणा ॥७०॥ ३१६१५२ । अर्थ :- जगत के अभ्यन्तर भागमें जम्बूद्वीपको परिधि तीन लाख सोलह हजार एकस बावन (३१६१५२) योजनसे कुछ कम है ॥७०॥ विशेवार्थ:- गाथा १६ में जगतीका मूल विस्तार १२ योजन कहा गया है। जो शेनों ओरका (१२x२= } २४ योजन हुआ। इन्हें एक लाख ब्यासमेंसे घटा देनेपर ६६६७६ यो० प्राप्त हुए । २. उभधिरितो, म.अधिरित य प्रविरिक्षा ३. क. सौ. मोड़ 7
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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