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पिण्यास
सत सहस्ताणि धणू, पंच-सर्यााणि च होति बत्तीसं । तिष्णि-विय 'पब्वाणि, तिम्णि जबा किंचिदविरिता ॥६६॥
७५३२ । ३ । जो ३
अर्थ :- जगन के बाह्य भागमें द्वारोंके अन्तरालका प्रमाण उन्यासी हजार बावन बत्तीस ( ७५३२ )
(७६०५२) योजनले म है । ( इस
प्र
सेफ
धनुष, तीन अंगुल और कुछ अधिक तीन जो है ।।६८-६९ ।।
[ गाथा : ६९-७०
विशेषार्थ : - ( गाथा ५१ से ५६ पर्यंन्त ) जम्बूद्वीपको परिधि ३१६२२७ योजन, ३ कोस, १२८ धनुष आदि कही गई है। इसमेंसे १६ योजन [ जगती में चार द्वार हैं और प्रत्येक द्वार चार योजन घोड़ा है ( गा० ४४ ), अतः १६ ० ] घटाकर चारका भाग देने पर जगतीके वाह्य भाग में द्वारोंके अन्तरालका प्रमाण प्राप्त होता है । यथा - १११ = ७९०५२ योजन, ३ योजन अवशेष
३
यो० x ( ४ को ० ) + ३ = ३ कोस, अवशेष ३ कोस । ( ३x२००० ४०
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१५३२ धनुष पाय, ३ अंगुल,
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वितस्ति,
अर्थात् ३ कोस १५३२ धनुष या ७५३२ धनुष, ० रिक्कू हाय ३, २ जू २ लीक, ३ कर्मभूमिके चाल, ४ ज० म० के बाल, १ म० भ० का जाल, ७ उ० भ० के बाल, २ रेणु, २ ० ६ टरेणु, सन्नासन्न एवं ४३ अवसभासन ब्यादि द्वारोंके अन्तरालमें अधिकका प्रमाण है ।
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६०) + १२८
१. द. पंचा ४. य. गिस्य ।
जगतीके अभ्यन्तरभाग में जम्बूद्वीपको परिधि
जगवी - अभंतरए, परिही लक्खाणि तिष्णि जोयगया ।
सोल ससस्स - मि-सय-बाणा होंति किणा ॥७०॥
३१६१५२ ।
अर्थ :- जगत के अभ्यन्तर भागमें जम्बूद्वीपको परिधि तीन लाख सोलह हजार एकस बावन (३१६१५२) योजनसे कुछ कम है ॥७०॥
विशेवार्थ:- गाथा १६ में जगतीका मूल विस्तार १२ योजन कहा गया है। जो शेनों ओरका (१२x२= } २४ योजन हुआ। इन्हें एक लाख ब्यासमेंसे घटा देनेपर ६६६७६ यो० प्राप्त हुए ।
२. उभधिरितो, म.अधिरित य प्रविरिक्षा ३. क. सौ. मोड़
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