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________________ तिलोयपम्पती [पाषा: १५१२-१५१४ प:-उपबा, वीर भगवान के निर्वाण जानेके छहसा पांच वर्ष और पांच मास व्यतीत हो जानेपर सक नप उत्पम हुआ ।।१११|| ' वारि ... R EATER पाठान्तर । भापुको क्षय-द्धि एवं शक नृपके समयको उत्कृष्ट-आयु निकालनेका विधान पीसुत्तर - बास - सो, वोसपि वासानि सोहिकण तो। गिबोस • सहस्सेहिभगिरे बाण सय - गढी ॥१५१२|| म:-एकसौ बीस वषो से योस वर्ष घटा देनेपर जो शेष रहे, उसमें इसकीस हजारका भाग वेनेपर प्रायुको क्षय-वृद्धिका प्रमाण पाता है ॥१५१२१॥ पचा:-( १२० -२.)२१००० वर्षमा वर्ष हानि-वृद्धिका प्रमाण । अर्थात् पाबुका प्रतिदिन की हानि-द्धि का प्रमाण ६ मिनट ५२ सेकेण्ड है। सक-निव-वास-वाण, चच-सब-पिसहि-वास-पापीर्न । बस-गुण-दो-सय-भनिवे, लई मोहेज विगुण - महीए ॥११॥ तस्सि' अबसेसं, तोष पमनाम • अट्ठाक । पाठतरेषु' एसा, कुत्ती सम्वेस पत्ते ॥१५१४॥ प्रध:-शक नृपके वर्षों सहित चारसौ इकसठ माविमर्शको दोसो दससे भावित करे, जो लन प्राप्त हो उसे एकसौ बीसमेंसे कम करने पर जो अभिष्ट रहे उतना उसके समयमें प्रवर्तमान उत्कृष्ट मायुका प्रमाण पा । यह युक्ति एतत् सम्बन्धी पाठान्तोंमेंसे प्रस्पेकके समयमें भी जानना पाहिए ॥१५१५-१९१४॥ विसवावं :--प्रकारान्तरोंसे शक नए बीर-निर्वाणके ६१ वर्ष, वा ६७८५1 वर्ष, या १७९३ वर्ष मा ६१ वर्ष पश्चात् उतन्त्र हुया और उस (सकों) का राज्य २४२ वर्ष पर्यन्त रहा भात: प्रत्येक पक राज्यके अन्त में उत्कृष्ट प्रायुका प्रमाए इसप्रकार जानना चाहिए {१) १२० - { (४६१ + २४२) २१.} - १९६१ वर्ष इस शक राज्य के अन्तमें उत्कृष्टायु । १. ६. २१.ब. क. य. य. 3, २१...। २.१.... तिम्सम्य। ३.प. ब. क. प. प. उ. पारंतरे।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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