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गाया : १४१६-१४२२ ]
यो महाहियारो
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प्रचं :- जयसेन चक्रवर्तकि राज्यकालका प्रमाण उनोससी वर्ष मोर ब्रह्मदत्त नाएक चक्रधरके राज्यकालका प्रमाण छसौ वर्ष है ।। १४१८
। इसप्रकार राज्यकालका कथन समाप्त हुआ ।
चक्रवर्तियों का संयम-काल
एक्केमक-लक्ख-पुरुवा, पष्णास सहस्त वच्छरा लक्सं । पणवीस
कार्यक
सहस्वाणि तेवीस - सहस्स- सत्त-सम-पम्मा ॥११४॥
२५००० | २३७१० |
इगिवीस सहस्सा, तसो सुन्नं च दस सहस्साइं । पण्णाहिय-तिब्दि-सया बलारि स्याणि सुयं ।। १४२० ।।
| २१००० || १०००० | ३५० | ४०० । सु ।
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कमसो भरहावीणं, रज्ज विरताण चक्कवट्टोणं । निव्वाण - लाह - कारण -संजय कालस्मा परिमाणं ।। १४२१ ।।
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अर्थ :- राज्यसे विरक्त भरतादिक चक्रवतियोंके निर्वाण-लाभके कारणभूत संघ - कालका पच्चीस हजार वर्षे,
तमसौ पचास वर्ष,
प्रमाण क्रमशः एक लाख पूर्व, एक लाख पूर्व, पचास हजार वर्ष एक लाख वर्ष तेईस हजार सातसौ पचास वर्षे, इक्कीस हजार वर्ष फिर शून्य, दस हजार वर्ष चारसौ वर्ष घोर शून्य है ।। १४१६-१४२१ ।
भी
भरतादिक चवतियां की पर्यायान्तर प्राप्ति-
अब गया मोक्लं, बम्ह सुभडमा य सत्तमं पुढव । मघको सलक्कुमारो सणक्कुमारं गओ
एवं चमकहराणं परुणा समता ।
१. द. व. उ. कारणं... जय च सुममी ।
कप्पं ॥ १४२२ ।।