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तिलोयपणती [ गाथा : ११२०-१३२४ अलस्तम्भिमी विद्याकी सिथि एवं समुद्र प्रवेशमंतीनं उपरोहे. जलभं साहयति चाकहरा। बस-घर - तुरंग - परिवें', अजिवंजय - गामधेय - रहे ॥१३२०॥ आरहिऊर्ग गंगा बारे परिसिग सबहिं',
पारस - बोयण - मेतं, सम्बे गच्छति गो परयो ।।१२।।
ममं :-वापर चक्रवर्ती मन्धियोंके आग्रहसे समस्तम्भ ( बसस्तम्भिनी ) विणा सिब करते हैं। पुन: इस उत्तम घोड़ोंसे धारण किए गये अजितजय नामक रथ पर पढ़कर और पकाद्वारसे प्रवेशकर ये सब "पवणसभुन लेटानुसार और योनिमा माता, आगे नहीं ॥१३२०-१३२१॥
मागधदेवको वश करनाभागहदेवस्स तवो, ओसगसालाए रयन-वर-कलसं । विति समाकिद - बाणेण अमोघ - णामेण ।।१३२२॥
प्रबं:--फिर वहाँसे अपने नामसे अङ्कित भमोष नामक गाण-द्वारा मागधदेवकी प्रोसगछालाके रस्नमय उसप कलशको भेदते हैं ।।१३२२।।
सोदूण सर - निणार्य, 'मागहवेवो वि कोहमुन्वा ।
ताहे' तस्स य मंती, वारते महुर • सईण ।।१३२३॥
म:- बाणके पाब्दको मुनकर मागधदेव भी कोध धारण करता है किन्तु उस समय उसके मन्त्री जसे मधुर-शब्दों द्वारा ( ऐसा करनेसे ) रोकते हैं ॥१३२३।।
रयनमय • पडतिहाए, का घेत रण कुजलादि।
बता मागहयेवो', पणमइ बाकीण पयमूले ।।१३२४।।
म:-तब वह मागधदेव रत्नमय पलिका (पिटारी) में उस बाण मोर कुण्डलाविकको लेकर चक्रवर्तीको देता है और उनके वरणोंमें प्रणाम करता है ॥१३२४।।
१.क. अ. प. उ. परिक्ष, २. द. १. ब. भरनुपहि, , माउहि । उ. परावहि । इ. स. प. क.अ.प.. मापदेया। ४.६.ब. क. प. य. . जाद। ५ ग....कर .प.ब.क.अ. म... भागदेवा।