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________________ - - -- - गाथा : १२४९-१२४८ ] पतस्पो महाहियारो [ ३६७ भाव-श्रमणोंकी संस्थासासं पंच-सहस्सा, मष्ट-सपाणि मि मिलिय-परिमानं । विषय-सुख-नियम - सनम • भरिवाण भाव - समजाणं ॥१२ ॥ ।१०५८७० । पर्य :-विनय. श्रुत, नियम एवं संयमसे परिपूर्ण इन गर भाव मुनियों का सम्मिलित प्रमाण एक लाख, पाच हजार आठ सौ होता है ।।१२४६।। विशेषाय :- प्रत्येक सीर्घकरके इषियोंकी जो संख्या गर• ११०३-११०८ में बताई गई है वह सात गणोंमें विभक्त है। जिसको तालिका गाया संख्या ११७६ के बाद अंकित है। ऋषियोंकी यह संस्था सौधर्म से ऊर्ध्ववेयक, अनुत्तर और मोक्ष गमनकी अपेक्षा तीन मापोंमें विभक्त है । इनमें मोक्ष बाने वाले पौर मनुत्तर विमानोंमें उत्पत्र होने वाले सो माव-ऋषि ( श्रमण ) ही किन्तु सौधर्मसे ऊध्ययेयक तक जाने वाले ऋषि भी भाव श्रमण ही थे। यह सूचित करनेके लिए हो गाथा संख्या १२४६ में भावत्रमणाका प्रमाण पृयकर्माया गया है। ( सालिका ३१ पृष्ठ ३६८ पद पेखिये )
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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