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________________ तिलोयपण्णी [ गाया : २०-२३ जगनीका अभ्यन्तर एवं वाह्यादि विस्तारजगपी-उरिम-६'हे', बेटी-बक सोषि-अब-कदो। * सदमेक- पाल का पहिया Reat YETEE भ:-जगतीके परिम विस्तारमेंसे वेदोके विस्तारको घटाकर, गेषको आधा करनेपर को प्राप्त होता है वह वेदीके एक पाश्र्वभागमें जगतीके विस्तारका प्रमाण है ॥२०॥ विवार :-गाथा १६ में जगतीका उपारम विस्तार ४ योजन ( ३६००० धनुष ) कहा गया है। इसमें से वेदोका विस्तार (५०० धनुष ) घटाकर शेषको आधा करनेपर (By:')१५५५० धनुष देदीके एक पारवंभागमें जगतीका विस्तार है। पागरम-सहस्साणि, सत-सया 'षणमि पन्चासा । आमंतर-विक्वंभो, बाहिर-चासो वि सम्मेलो' ॥२१॥ दंड १७५० । प:-जगतीका अभ्यन्तर विस्तार पन्द्रह हजार सातसो पचास (१५७५०) धनुष है और उसका बाप विस्तार भी इसना ही है ॥२१॥ वेदीके दोनों पार्श्वभागों में स्थित बन-वापियोंका विस्तारादिबेबो-गो-पातुं, उपवण-संग' हवंति रमणिना। पर-चावहिं कुत्ता, विचित्त-मणि गिपर-परिपुच्चा ॥२२॥ प्रपं:-वेदोके दोनों पाश्वभागों में श्रेष्ठ वापियोंसे युक्त और अदभुत मणियोंके खजामों से परिपूर्ण रमणोक उपवन बण्ड है ।।२२।। बेटा दो-सव-बंग', विश्वंभ-बुबा हवेदि मम्भिमया । पणासहिय-सर्थ, 'बहण्या-पानी वि सयमेकं ॥२३॥ २०० । १५० । १०० । . द.... दो। ४. स. संयो.प. दुमे, ब. पंगे। ७. अ. जमण्य । २. द... क. प. उ. बंगारिण। १. इ. स. क.अ. ३. मुणिपार। ... प. मासोक्तिमेशा । ......ब. स. दो।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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