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________________ २०४ ] तिलोयवती [ गावा ७१५७१९ तक्कपेणं इंदा, संखुग्धोसेण भवनवासि सुरा । पह-रहिवंतर सीह-निनादेन जोहसिया ॥७३५॥ घंटाए कप्पवासी, जागुत्पति जिगान मानं । पणमंत भक्ति-कुसा, गंतूनं सल वि कमाओ' ।। ७१६ ॥ प्र : - आसन कम्पित होनेसे इन्द्र के उदघोषसे भवनवासी देव, पटके सब्दोंसे म्यन्तरदेव सिंहनादसे ज्योतिषी देव और घण्टाके शब्दसे कल्पवासी देव तीर्थंकरोंके केवलज्ञानकी उनि जानकर भक्ति होते हुए जामें सात द चलकर प्रणाम करते हैं ।।७१५- ७१६ ॥ 118373 अहमिदा जे देवा, आसन - न-कंपेन तं वि गाणं । गंम तेशियं चिय, तस्य ठिया से नर्मति जिणे ॥७१७॥ : जो अहमिन्द्र देव हैं वे को आसन कम्पित होनेसे केवलज्ञानको उत्पत्ति जानकर धीर उतने हो (७ कदम) आगे जाकर वहां स्थित होते हुए, जिनेन्द्रदेवको नमस्कार करते हैं ।।७१७१६ कुबेर द्वारा समवसरणकी रचना - ताहे सक्काणाए जिगाम ससाण समवसरणाणि । विविकरियाए घणदो, मिरएवि विचित-कहिं ॥७१८ ॥ म :- उस समय सौधर्मेन्द्रको आज्ञा से कुबेर विक्रिया द्वारा सभी तीर्थंरोके समवसरण की अद्भुत रूपमें रचना करता है ११७१८ ।। समवसरणका निरूपण करनेकी प्रतिज्ञा– उबभातीयं तानं को सक्क बन्निदु सयल-रूवं । एन्हि' लव-मेरामहं साहेमि जहाणुपुबोए ॥७१६ ॥ यं - उन समवसरणोंके सम्पूर्ण अनुपम स्वरूपका वर्शन करने में कौन समर्थ है ? अब मैं (यतिवृषभाचार्यं) आनुपूर्वी क्रमसे उनके स्वरूपका अल्प मात्र (बहुत बोड़ा) कयन करता १७१६।। . पं.पं. क ज य उ बिनायो । २. . . . . गो २.स.
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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