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तिमोयपणती
[ गाथा : ३७६-६७८ :-मल्सिनाथ जिनेन्द्र तोन सी राजकुमारों के साथ दीक्षित भए । पावनाय भी उतने हो ( तीन सौ ) राजकुमारों के साप दीक्षित हए तपा वर्षमान जिनेन्द्र मकेले ही दीक्षित हुए ( उनके साथ किसी की भी दीक्षा नहीं हुई ) | |
पासपूनम
साहरि-भू-सिय-संधि पासपूल्बलामी य । उसहो तालसए हि, सेसा गृह-पुह सहस्स-मैतहि ।।६७६।।
बासु ६७६ । उसह ४०००। सेसा परोक्का १००० ।
म:-वासुपूज्य स्वामी छह सौ छिहत्तर ( ६७६ ). ऋषभनाय चार हजार ( ४०००) और शेष तोयंकर पृषक-पृथक् एक-एक हजार ( १०००-१०००) राजकुमारोंके साथ दीक्षित हुए ॥६७६॥
दीक्षा-अवस्था-निर्देश
मी मल्लो बोरो, कुमार-कालम्मि वासुपुबो य । पासो बि.य गहिर-सबा, सेस-जिना रन्ज-रिमम्मि ॥६७७।।
मं:-भगवान् नेमिनाथ, मल्लिनाप, महावीर, वासुपूज्य और पावनाप इन पांच तीपैकरोंने कुमारकासमें और शेष तीर्थकुरोंने राज्यके अम्तमें सप पहण किया । ७७||
प्रयम पारणाका निर्देशएक-बरिसेन उसहो, उच्छरसं कणा पारणं अबरे। गो-खोरे निप्पन्न, अन्य बियिम्मि विवसम्मि ।।६।।
म:-भगवान ऋषमदेवने एक वर्ष में इसरसकी पारणा की बी और इतर तीर्थरोंने दूसरे दिन गो-क्षीरमें निष्पन्न पन (खीर) की पारणा की पो ॥६७८॥
विरोषा:-भगवान ऋषभदेवने छह मासके उपवास सहित दीक्षा ग्रहण की थी परन्तु उनकी पारणा एक वर्ष बाद हुई थी । पोष तेईस तीपंकरोंमेंसे २० ने तीन उपवास, दो तीर्थरोंने दो उपवास और श्री वासुपूज्य स्वामीने एक उपासके साथ दीक्षा ग्रहण की पी । इन सबकी पारणा दीक्षोपवासोंके दूसरे दिन हो हो गई थी।