________________
१०० ]
तिलोत
[ गाथा : २११
जं तं जण परितार्णतयं तं विश्लेन एक्केक्स रूवस्स जण-परिता मंत वाचून अन्नोज्नभल्बे कबे उनकस्स - परितामंतयं अविच्छिवूण ब्रहम्ण-जुतानंतयं गंत पदि । एकवि अमध्य सिद्धिय-रासी । तवो एग-लवे अवणीचे जावं उपकरस परिताणंतयं । तदो जहा जुलानंतयं सह वग्गिदं उनकस्स - जुखानंतयं अविच्छिन अहम्णमनंतातयं गं पडिवं । तो एग-रूवे अग्रणीये जावं उक्कस्स- जुत्ताणंतमं । तवो जहण्णमअंताणंतयं पुरुषं व विनिवार वग्गिद संवगिद करे उपकल्स अनंतानंतयं ण पावर ।
:- यह जो जघन्य परीतानन्त है, उसका विरलन कर और एक-एक अंकके प्रति जघन्य परीतानन्स ( ही ) देय देकर परस्पर गुणा करनेपर उस्कृष्ट परीतानन्तका उल्लंघन कर जघन्ययुक्तानन्त प्राप्त होता है। इतनी ही अभय्यराशि है ( जघन्य युक्तानन्त की जितनी संख्या है उतनी संख्या प्रमाण ही अमस्य राशि है ) । इस जयन्य युतानन्तमेंसे एक अंक कम करने पर उत्कुष्टपरीतानन्त होता है । तत्पश्चात् जघन्ययुक्तानन्तका एक बार वर्ग करनेपर उत्कृष्टयुक्तामन्तको लांघकर जपश्य-अनन्तानन्ययुतानन्तकी प्राप्ति होती है । पश्चात् जघन्य अनन्तानन्त रूप राशि को तीन बार वर्गित संवर्गित करनेपर ( भी ) उत्कृष्टअनन्तानन्त प्राप्त नहीं होता ।
सिद्धा निगोद- जीवा, वनफदि कालो य पोष्णला चेव । "सध्दमलोगागासं, छप्पेवे नंत पत्रसेवा ।।३१६||
अर्थ :- सिद्ध ( जो सम्पूर्ण जीव राशिके अनन्त भाग प्रमाण हैं ), निगोद जीव ( जो सिद्धरासिसे अनन्तगुणी और पृथिवीकाय आदि बार स्थावर, प्रत्येक वनस्पति एवं त्रस इन तीन राशियोंसे रहित संसार राशि प्रमाण हैं ) वनस्पति ( प्रत्येक वनस्पति सहित निगोद वनस्पति ), पुद्गल ( जो जीव राशिसे अनन्तगुरणा है ), काल ( जो मुद्गलसे अनन्तगुणे हैं ऐसे कासके समय } और अलोकाकाश { जो काल द्रव्यसे अनन्तगुणं हैं ) ये छह अनन्त प्रक्षेप है ।।३१२ ।।
-
सानि पक्खिण पुष्यं व तिन्निवारे वरिगद संबग्गिदं कवे, सदो उक्करअनंतानंतयं ण पार्थावि । तो धम्मट्टियं अधम्मष्ट्ठियं अगुरुलहूगुणं अनंतानंतं पक्लिविण पुष्यं व तिणिबारे जग्गर संबग्गिदं कदे उनकस्स अनंताणंतयं ण उष्पक्जदि । सबो
-
·
-
१. . . . . 3. सबमा २८. ब. पेट क. ज. उ. पेदि ।