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________________ १८ ] निलोयपणाती [ गाथा : ३१५ परिसातयं चेदि । जं तं जुत्ताणंतपं तं तिविहं, जहष्ण-जुत्ताणतयं, अजहबमनुष्कस्सपत्ता- कस्स तमिल मतिविहं बाहनमर्गतातयं, अजहण्गमणुक्कस्स-प्रणंतागतयं, उपकस्स-प्रचंताणतयं देवि । पर्ष :-जो यह अनन्त है वह तीन प्रकार है-परीतानन्त, पुक्तानन्त और मनन्तानन्त । इनमेंसे जो परीतामन्स है यह तीन प्रकार है-जघन्य परोतामम्स, अजघन्यानुस्कृष्ट परीतानन्त और उत्कृष्ट परीतानन्त । इसीप्रकार पुक्तानन्त भी तीन प्रकार है--जधन्य युक्तानन्त, अजघन्यानुस्कृष्ट मुक्तामम्त मौर सस्कृष्ट युक्तानन्त । अनन्तानन्त भो तीन प्रकार है-अघन्य अनन्तानन्त, अजधन्यानुस्कृष्ट मनन्तानन्त और उत्कृष्ट अनन्तानन्त । विचा:-संख्यात, असंख्यात और मनन्तके भेद प्रभेदोकी सालिका [ तानिका भगले पृष्ठ पर देखिये ]
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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