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(च) दिनमान प्रमाण सम्बन्धी प्रक्रिया में, पितामह सिद्धांत का जैन प्रक्रिया से प्रभावित प्रतीत होता।
(छ) छाया माप द्वारा समय निरूपए का विकसित रूप इ2 काल, मयाति आदि होना ।
इनके अतिरिक्त आतप और तम क्षेत्र का दर्शाये रूप में प्रकट करना किस प्रक्षेप के आधार पर किया गया है और सूर्य, चन्द्र के रूप और प्रतिरूप का उपयोग किस आधार पर हुआ है इस सम्बन्धी शोध चल रही है । चक्षुस्पर्शध्वान पर भी अभी कुछ नहीं कहा जा सकता है जब तक कि उसकी मनोगिक विज्ञान से गुलना न कर दी जाये।
पूज्य प्रायिका विशुद्धमतीजी ने असीम परिश्रम कर चित्र सहित अनेक गणितीय प्रकरणों का निरूपण ग्रंथ की टीका करते हुए कर दिया है । अतएव संक्षेप में विभिन्न गाथाओं में पाये हुए प्रकरणों के सूत्रों तथा अन्य महत्त्वपूर्ण गणितीय विवरण देना उपयुक्त होगा।
२. तिलोयपण्णत्ती के कतिपय गणितीय प्रकरण :
(प्रथम महाधिकार ) गाथा १४६१ अनन्त अलोकाकाश के बहुमध्यभाग में स्थित, जीवादि पांच द्रव्यों में व्याप्त और जगश्रेरिण के घन प्रमाण यह लोकाफाश है ।
E १६ ख ख ख उपर्युक्त निरूपण में = जगश्रेरिण के धन का प्रतीक है जो लोकाकाश है । १६ जीवराशि की प्रचलित संदृष्टि है 1 इसीप्रकार १६ से अनन्तगुनी १६ ख पुद्गल परमाणु राशि की संदृष्टि है और इससे अनन्तगुणी १६ ख ख भूत वर्तमान भविष्य त्रिकाल गत समय राशि है। इस समय राशि से अनन्त गुनी १६ ख ख ख अनन्त अाकाशगत प्रदेश राशि की संदृष्टि मानी गयी है जो अनन्त प्रलोकाकाश की भी प्रतीक मानी जा सकती है क्योंकि इसकी तुलना में = लोकाकाश प्रदेश राणि नगण्य है। इसप्रकार उक्त संदृष्टि चरितार्थ होती है ।
गाथा १/६३-१३० पाठ उपमा प्रमाणों की मदृष्टियाँ
प० १ । सा० २ । सू०३ । ३०४ । घ० ५ । ज०६ । लोक प्र०७ । लो० ८ ।। दी गयी हैं जो पल्य सागरादि के प्रथम अक्षर रूप हैं ।